जनसंख्या वृद्धि और अनावश्यक खर्चों पर लगाम से होगा सामाजिक बदलाव

Pollation Control

जनसंख्या के बारे में दो बाते उभर कर सामने आती है, पहली ये कि जनसंख्या का असमान केंद्रीकरण रोकना चाहिये और दूसरी ये कि जनसंख्या की चक्रवर्ती वृद्धि पर लगाम कसी जाये. आजादी के समय हम पूरी तरह से कंगाल थे और ना ही शासन का कोई अनुभव ही था. इसके बावजूद, जितनी जल्द और जितनी तरक्की देश ने की, वो काबिले तारीफ है. लेकिन इसका कोई खास लाभ हमें नहीं मिल सका क्योंकि उन्नति के साथ ही आबादी भी सुरसा के मुँह की तरह बढती गई. इसका एक कारण मृत्यु दर का घटना भी है. वैसे इन 10 सालो में बढती आबादी पर लगाम लगी है, लेकिन अभी भी भारत की आबादी 1 अरब के अंदर ही रहनी चाहिये.

आबादी पर लगाम लगाने के लिये विगत सरकार ने नसबंदी कार्यक्रम लागू किया था, जिसके फलस्वरूप उसे सत्ता से हटना पड गया था. ऊपर से धर्म और जाति के ठेकेदारो ने अपना-अपना वोट बैंक बढाने के चक्कर में लोगो को ज्यादा बच्चे पैदा करने को खूब उकसाया.
……..लेकिन अब ये समय है कि सरकार कडे नियम-कानून बनाकर जनसंख्या पर लगाम कसे.

आप देखेंगे कि पिछले 70 सालो में गरीब और दलितो ने सवर्णो से दोगुने-तीनगुने बच्चे पैदा किये हैं. 100 साल पहले जो दो थे, आज वे 100 से ऊपर हो चुके हैं, जबाकि सवर्ण वर्ग शिक्षित होकर बेहद कम बच्चे पैदा किये. सवर्णोँ में इस बात का रोष है.
इसलिये अगले दस सालो में बच्चे पैदा वही कर सके, जिनके एक भी बच्चा नहीं है, या जो नये शादी शुदा हैं. उस बच्चे का सारा बेसिक खर्च, शिक्षा का प्रबंध सरकार करे. इसके इतर दूसरी प्रेगनेंसी होने पर अबोर्सन कराना अनिवार्य कर दिया जाये. फिर भी यदि कोई दूसरा बच्चा पैदा करे, तो उसे सभी आर्थिक सबसीडी से वंचित कर दिया जाये, उलटे आर्थिक दंड दिये जाये, सरकारी नौकरी से अयोग्य घोषित कर दिया जाये…..फिर देखिये, कैसे जनसंख्या पर लगाम लगती है !!

दूसरी तरफ गांव का बेहतर विकास किया जाये, मनरेगा के तहत वहाँ बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर डवलप किया जाये, लेबर इंटेंसिव उद्योगोँ को महानगरो से 100 किलोमीटर और शहरोँ से 50 किलोमीटर दूर फैक्टरी लगाने को बाध्य किया जाये, इसी आधार पर नई युनिट को लाईसेंस दिये जाये, साथ ही विभिन्न इंसेंटिव भी दिये जाये. इससे जनसंख्या का विकेंद्रीकरण सम्भव हो पायेगा. साथ ही अमीर-गरीब के अंतर को, खाई को भी काफी कुछ पाटा जा सकेगा, और तभी हम कोरोना जैसी महामारी से भी बच पायेंगे.

अनावश्यक खर्चों में कमी और रहन-सहन में बदलाव का व्यापक असर:

गरीब तो मर ही जायेगा, उसके पास खोने को और कुछ बचा ही नहीं, अमीर को कोई खास फर्क नही पडेगा……लेकिन लोवर मिडल क्लास बेचारा कहीँ का नही रहेगा. हालांकि मैं स्वयँ अपर मिडल क्लास क्लास हूँ, लेकिन किफायत मेरा स्वभाव है और कभी भी आडम्बर, पाखंड और फुजूलखर्ची नहीं करता. लेकिन आपके ऊपर दोहरी मार पडने वाली है.

एक बात तय मानिये कि अगले एक साल तक आप कुछ भी कमा नहीं पायेंगे, बल्कि आपकी वर्तमान पूंजी भी आधी-पोनी ही रह जायेगी, चाहे आप व्यापारी हो, या फिर नौकरी पेशा. व्यापारी का धंधा चौपट होगा और नौकरी कितनो की छूटेगी, कोई पता नहीं. इसलिये मेरा आपसे अनुरोध् है कि इस समय समाज के बारे में सोचना तो छोड ही दीजिये…. बुरे वक्त में कोई भी काम नहीं आने वाला. वैसे भी सबको अपनी-अपनी पडी है. इसलिये अपनी चादर पूरी तरह से समेट लीजिये और कहाँ कहाँ वर्तमान खर्चो में कटौती कर सकते हैं, पत्नी-बच्चो के संग बैठ कर इसकी प्लानिंग कीजिये और बजट बनाईये.

लेकिन इसके लिये सबसे पहले ये जरूरी है कि आप सरकार के झांसे और विज्ञापनो, सेल आदि के लुभाने के चक्कर में कतई नहीं पडेंगे. सरकार तो चाहेगी कि आप ज्यादा से ज्यादा खरीदारी करे, ताकि उसे ज्यादा से ज्यादा टैक्स मिल सके. यदि सरकार आपको लोन भी दे रही है, तो उसे अपने अन्य लोन चुका दे, ब्याज का भार आगे और ना बढाये. आप ये भी ना सोचे कि यदि आप नहीं खरीदेंगे, तो बाजार में जान कैसे आयेगी? इस समय सिर्फ और सिर्फ अपने, अपने परिवार के बारे में ही सोचे… बस. यदि आप गहराई से तुलना कर पाये, तो आप पायेंगे कि आपके बहुत सारे खर्चे गैर आवश्यक है और आपको वास्तव में उन सबकी कोई खास आवश्यकता ही नहीं थी. उदाहरण के लिये, कोस्मेटिक्स सामान.

  • बंधुओँ, मैं ना तो नहाने की साबुन यूज करता हूँ, ना ही शैम्पू-कंडीशनर, ना ही तेल और ना ही शेविंग़ क्रीम, लोशन आदि. नहाने से पहले सूखी मालिस और फिर शावर से पानी डालकर पूरे शरीर को खूब मल मल कर सारा मैल निकाल लेता हूँ. आप भी शैम्पू की जगह रीठा-आंवला-शिकाकाई उबाल कर शीशी में रख कर शैम्पू कर ले, कंडीशनर के लिये नहाने से कुछ पहले सर पर दही मल ले. उसके बाद गीले चेहरे पर ही शेविंग ब्लेड रगड ले, दाढी के बाल नरम हो चुके होंगे और शेविंग़ क्रीम की आवश्यकता ही नहीं पडेगी. इसी तरह बहने कोस्मेटिक/क्रीम की जगह घरेलू उपाय कीजिये, किचेन में बहुत सारी सामाग्री मिल जायेगी, जो आपकी नानी-दादी यूज किया करती थी.
  • आप विज्ञापन और सेल के चक्कर में बहुत सारे सामान खरीद लेते हैं, ये सोच कर कि चलो आगे काम आ जायेंगे. लेकिन अब ऐसी गलती भूल कर भी मत कीजियेगा.
  • ब्रांडेड का चक्कर तो जितनी जल्दी भूल जाये, उतना ही बेहतर. बाजार से आधे-चौथाइ दाम में प्रायः वही चीज मिल जायेगी, भले ही क्वालिटी जरा उन्नीस हो…. क्या फर्क पडता है?
  • फास्ट फूड, जो सिर्फ स्वाद देता है, लेकिन आपके स्वास्थ के लिये हानिकारक है… ऐसे खर्च पर पूरी तरह से लगाम लगा दे. घर का सादा और पौष्टिक भोजन ही करे.
  • एक बात अच्छी तरह समझ ले कि इस समय आप अपनी सेहत से कतई खिलवाड नहीं कर सकते, क्योंकि डाक्टर-अस्पताल और दवा पर अनाप-सनाप खर्च आपके और आपके परिवार को कंगाल बना सकते है. इसलिये अपनी सेहत के लिये कम से कम एक घंटा रोजाना वाक/ध्यान/प्राणायाम/योगासन को दे.
  • अपनी कोठरी/ टांड में से सारे सामान निकाल कर देखिये कि कपडे वैगरह और अन्य सामान जो आपके काम आअ सकते हो, उन्हे यूज कीजिये और बाद बाकी अपने मातहतो को सलटा दे.
  • अपने सारे कैपिटल खर्चे कम से कम एक साल के लिये टाल दे, कोई खास फर्क नहीं पडेगा.
  • धार्मिक आयोजनोँ से पूरी तरह से दूरी बना ले. ईश्वर आपके मन में होना चाहिये, उसे मंदिर में ना खोजे. पंडो-पुजारी पर धन व्यय करना महामूर्खता है.
  • देश-विदेश घूमने के समस्त कार्यक्रम के से कम एक साल के लिये टाल दे.
  • सामाजिक आयजनो पर होने वाले खर्च पर भी पूरी तरह से लगाम लगा दे. लोगो का क्या है? खा-पी कर पिछवाडा झाड कर एक बार आपकी तारीफ कर देंगे, लेकिन तुरंत ही भूल जायेंगे. इस वक्त किसी को भी दूसरे के लिये कोई दिलचस्पी नहीं, सब अपनी-अपनी बचाने में ही लगे पडे हैं.
  • घर में कम से कम सामान रखे, कम से कम फर्नीचर रखे. फ्रीज का उपयोग सिर्फ सामान खराब होने से बचाने के लिये ही करे. नया सामान को खरीदना ही नहीं, जितना टाल सके, टाल दे.
    इस समय सिर्फ उतना ही खर्च करे, जितना कि जीने के लिये अति-आवश्यक है, वरना कटोरा हाथ में आने में ज्यादा देर नही लगेगी.

लेखक: कमल झँवर, सोशल एक्टिविस्ट, नेचुरोपैथ व लाइफस्टाइल कंसल्टेंट

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