ग्राम प्रधान कैसे बनें, जानिए सैलरी, योग्यता, कार्य व अधिकार-क्षेत्र
जो लोग गांव से जुड़े हुए हैं उनको कभी न कभी ग्राम प्रधान से जरुरत अवश्य पड़ी होगी। तो आपको उनसे जुड़े कामों के बारे में थोड़ा बहुत पता ही होगा। ग्राम सभा का मुखिया बनना आज कल तो बहुत मुश्किल सा लगता है। अब हम बात करते हैं की इसकी शुरुवात कहाँ से हुई, जैसा की हम सबको पता है की भारत में 60-70 प्रतिशत जनसंख्या गांव में निवास करती है। गांव के विकास तथा इतनी बड़ी जनसंख्या की समस्या को सुनने उसको आगे पहुंचाने के लिए गांव में एक प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित करने और उसे लागु करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 243 में इसकी व्यवस्था की गयी, जिसके अंतर्गत पंचायती राज का प्रावधान व्यवस्था में लाया गया तथा इसमें ग्राम सभा और ग्राम पंचायत दोनों का गठन किया गया। ग्राम पंचायत का अध्यक्ष (मुखिया) ग्राम प्रधान ही होता है जिसके ऊपर पूरे गांव के विकास की जिम्मेदारी के साथ साथ गांव की समस्या को सुनने और उसके समाधान की भी जिम्मेदारी होती है।
हम यहाँ आपको ग्राम प्रधान बनने के लिए कुछ जरुरी बातों, जिसमे चुनाव, कार्य, अधिकार और योग्यता के विषय में विस्तार से बताऊंगा
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ग्राम सभा व ग्राम पंचायत का मुखिया:
छोटे -छोटे गांवो का समूह या कोई एक बड़ा गांव जिसमे मतदाता की संख्या 200 या उससे अधिक हो ग्राम सभा कहलाता है, यहाँ 200 संख्या का मतलब है उस गांव में 200 या उससे अधिक लोगों का नाम वोटर लिस्ट में हो। किसी भी ग्राम पंचायत का मुखिया ग्राम प्रधान ही होता है, अलग अलग जगहों पर इनको मुखिया व सरपंच जैसे अलग अलग नामो से जाना जाता है, जिसके ऊपर पूरे गांव के विकास की जिम्मेदारी के साथ साथ गांव की समस्या को सुनने और उसके समाधान की भी जिम्मेदारी होती है। गावं का चतुर्मुखी विकास ग्राम प्रधान के हाथ में होता है ।
ग्राम-प्रधान बनने के लिए योग्यता:
ग्राम सभा का मुखिया बनने के लिए उम्मीदवार का उसी गांव का निवासी होना अनिवार्य है, उत्तर प्रदेश में इसके के लिए कोई न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता फ़िलहाल तो नहीं है लेकिन हर राज्य में यह अलग अलग निर्धारित हो सकती है। ग्राम पंचायत का चुनाव लड़ने ग्राम प्रधान बनने के लिए उम्र कम से कम 21 वर्ष निर्धारित की गयी है।
कुछ राज्यों में ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ने की योग्यता आठवीं या दसवीं पास रखी गयी है, राजस्थान में ग्राम प्रधान के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता कक्षा आठ उत्तीर्ण रखा गया था लेकिन नयी सरकार आने के बाद इसको को खत्म कर दिया गया। इसी प्रकार हरियाणा में यह कक्षा दस उत्तीर्ण रखा गया है तथा महिला उम्मीदवार एवं अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आठवीं पास।
ग्राम सभा का मुखिया बनने के लिए कुछ जरूरी दस्तावेज नीचे दिए गए हैं:
- सेल्फ अटेस्टेड शपथ पत्र
- SC/ST/OBC वर्ग के उम्मीदवारों का जाति प्रमाण
- एज सर्टिफिकेट – न्यूनतम आयु 21 वर्ष या उस से अधिक साबित करने के लिए
- ग्राम सभा की वोटर लिस्ट में नाम होना चाहिए
- इसके अलावा इनकम सर्टिफिकेट, पैन-कार्ड, आधार कार्ड, चरित्र प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र तथा पुलिस सत्यापन आदि की भी जरूरत पद सकती है।
ग्राम-प्रधान का वेतन:
ग्राम प्रधान की सैलरी अलग अलग राज्यों में अलग अलग हो सकती है, जैसे उत्तर प्रदेश में सरपंच को बेसिक सैलरी के रूप में 3500/- मिलते हैं इसके अलावा उत्तर प्रदेश में इनको कुछ भत्ते भी अलग से मिलते जिसमे यात्रा- भत्ता ₹15000 मिलता है
- ग्राम प्रधान का वेतन = बेसिक मानदेय (₹3500) + यात्रा- भत्ता (₹15000)
- सैलरी के रूप में कुल ₹18500/- रुपये रूपये प्रति माह मिलता है।
ग्राम पंचायत का गठन, चुनाव व शपथ:
गांव के मतदाताओं के द्वारा एक मुख्य सदस्य का चुनाव होता है जिसको ग्राम प्रधान, मुखिया व सरपंच कहा जाता है इनका कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, इसके अलावा कुछ और सदस्यों का भी चुनाव साथ में होता है जिनको ग्राम पंचायत सदस्य कहा जाता है।
हर ग्राम सभा में प्रत्येक पांच वर्ष के बाद निर्वाचन आयोग के द्वारा चुनाव कराया जाता है, जिसमे निर्वाचन आयोग की मुख्य भूमिका होती है चाहे वो अधिसूचना जारी करने की बात हो या आचार संहिता को लागू करने का काम हो। जिसको भी सदस्य पद या ग्राम प्रधान पद पर चुनाव लड़ना होता है, उसको एक निर्धारित समय के अंदर आवेदन पत्र या पर्चा दाखिल करने का काम जिला-निर्वाचन अधिकारी के समक्ष जाकर करना होता है, उसके बाद निर्वाचन कार्यालय से चुनाव का चिन्ह हर उम्मीदवार को दिया जाता है। मतदान के बाद वोटों की गणना की जाती है, इसमें जिस प्रत्याशी को सबसे ज्यादा वोट मिलते है, उस निर्वाचित सदस्य को ग्राम प्रधान पद के लिए निर्वाचन अधिकारी के द्वारा एक प्रमाण पत्र दिया जाता है | प्रमाण पत्र मिलने के बाद प्रधान और अन्य सभी चयनित सदस्यों को पीठासीन अधिकारी व ग्राम पंचायत सचिव के द्वारा शपथ दिलाई जाती है। इस प्रकार गांव के प्रधान पद व अन्य सदस्यों का चुनाव होता है।
ग्राम-प्रधान का कार्य क्षेत्र:
- ग्राम पंचायत के सारे विकास कार्यों के निष्पादन में ग्राम प्रधान की मुख्य भूमिका होती है
- गावं का चतुर्मुखी विकास करना
- आवासीय योजना के तहत लोगों के घरों के निर्माण कार्य की देखरेख
- कच्ची-पक्की सड़कों का निर्माण करवाना
- जमीन व तालाब का पट्टा जरुरत मंद को मिले इसकी जानकारी प्रशासन को देना
- युवा कल्याण संबंधी कार्य के देखरेख करना
- पंचायती राज्य संबंधी ग्राम स्तरीय कार्य
- पंचायती राज्य संबंधी पेंशन को सही से लागू करवाना व वितरण करने का कार्य
- चिकित्सा और स्वास्थ्य संबंधी कार्य व महिला एवं बाल-विकास संबंधी कार्य करवाना
- पशु धन विकास संबंधी कार्य करवाना तथा पशुओं के पीने के पानी की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी
- राशन की दुकान का आवंटन और निरस्तीकरण में भूमिका निभाना
- राजकीय नलकूपों की मरम्मत व रख रखाव तथा पानी निकासी के ड्रेनेज की भी व्यवस्था करवाना
- गावं के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय का निरीक्षण करना तथा आवश्यक चीजों की पूर्ति के लिए प्रशासन अवगत कराना
- कृषि कार्य की रूप रेखा तैयार करना और कृषि संबंधी व्यवधानों को अपने स्तर दूर करवाना
ग्राम-प्रधान के अधिकार:
हर ग्राम पंचायत में पंचायती राज मंत्रालय के तरत विकास का खांका तैयार करने के लिए 6 समितियों का गठन किया जाता है जिसके मॉनिटरिंग का काम ग्राम प्रधान ही करता है। ये 6 समितियां इस परकार हैं।
- प्रशासनिक कार्य समिति
- नियोजन कार्य समिति
- चिकित्सा स्वास्थ्य समिति
- निर्माण कार्य समिति
- शिक्षा समिति
- जल प्रबंधन समिति
इसके साथ ग्राम सभा में ग्राम पंचायत की बैठक को संचालित करना तथा उसकी कार्यवाही को नियंत्रित करना। ग्राम पंचायत की सारी योजनाओं को सुचारु रूप से लागू करवाना, पशुपालन, कृषि और ग़रीबी उन्मूलन कार्यक्रमों को संचालित करना। सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओ की जानकारी सम्बंधित अधिकारीयों हासिल करके गांव में बताना जिससे योजनाओ का लाभ गांव के लोग प्राप्त कर सके तथा जागरूकता अभियान के तहत गांव के नागरिकों को जागरूक करना आदि कार्य ग्राम प्रधान के अधिकार क्षत्र में आते हैं।