ग्लोबल vs. लोकल: एक ग्लोबल बीमारी ने देश को इतना लोकल कैसे बना दिया

In India Global vrs Local Product

माननीय प्रधानमंत्री जी का Lockdown के तीसरे चरण के लगभग उत्तरार्ध पर बेहद सधा हुआ आवाहन था। आवाहन कई तरह से महत्वपूर्ण था और आगे की दिशा दिखाने वाला भी। ये बात और है कि आगे की दिशा पर प्रकाश तीसरे चरण की घोषणा के साथ पड़ चुका है। वैश्विक महामारी से कम्पलीट lockdown द्वारा जीता नही जा सकता ये स्पष्ट हो चुका है। कई प्रदेश सरकार पहले ही इस बात को मान चुकी है और कल प्रधानमंत्री भी इस बात को दोहराते दिखे। कोरोना से क्यो नही जीता जा सका इसका छिद्रान्वेषण किसी धर्म, जाति, देश और राजनीतिक आस्था से परे जाकर होना चाहिए और इससे भी ज्यादा जरूरी ये है कि इसके साथ कैसे जिया जाए। Lockdown का चौथा चरण कैसा होगा ये तीसरे चरण के अंतिम दौर में देखा जा सकता है। even-odd, left-right और staggering जैसी theory दिखाई देंगी। प्रधानमंत्री जी के भाषण में सबसे अहम बात MSME सेक्टर को लेकर उनकी चिंता को लेकर दिखी जिसको उन्होंने आत्मनिर्भर भारत और लैंड, लेबर, लोकल और लॉ से जोड़ा और इन सबको एक साथ लाकर एक राहत पैकेज से मिला दिया। उनके इस कदम में कोई खामी नही दिखती क्योकि MSME देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है

दुविधा मुझे इस सरकार और पूर्वगामी सरकार की नीतियों में दिखी। एक ग्लोबल बीमारी ने देश को इतना लोकल कैसे बना दिया कि नीति में प्रायोरिटी शिफ्ट देखी जा रही है। 1992 से शुरू हुआ globalisation का दौर कई लोकल उद्योगों व लोकल प्रोडक्ट को चौपट कर चुका है, ये वो उद्योग है जो शहर की चकाचौंध में नही दिखते। याद करिये कि आपके मोहहले में आखिरी बार शहद या दही बेचने कौन कब आया था। कितने MSME उत्पाद आप तक सीधे पहुंचते है। मॉल में कौन से प्रोडक्ट्स किस तरह सजा कर रखे जाते हैं कि आपकी नजर में केवल कुछ चुनिंदा प्रोडक्ट ही आये। MSME कॉलोनी जैसे बुनकर कॉलोनी, लकड़ी का काम करने वाले, कृषि बाज़ार इत्यादि का दायरा आपके शहर में बढ़ा है या कम हुआ है, देखने की चीज है।

ग्लोबलाइज़ेशन के दौर में कुछ लोकल प्रोडक्ट ग्लोबल हुए है लेकिन इनमें से कितने MSME है और कितने कॉरपोरेट के, इस पर चर्चा जरूरी है।
देश में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला MSME पिछले कुछ सालों से पिछड़ता जा रहा है। राजीव गांधी रोजगार योजना, स्वाबलंबन योजना और अब PMDAY- अर्बन जैसी योजनाये केवल परीक्षाओ में पन्ने रंगने योग्य ही दिखती है क्योंकि MSME कही न कही दबता चला गया और अखबारों और न्यूज़ चैनल पर बड़े कॉरपोरेट घरानों का जिक्र होता रहा और ये जिक्र इसलिए भी घातक है कि lockdown के दौरान jio-facebook डील को तो अखबारों के पहले पन्ने के जगह मिली लेकिन MSME जो दुश्वारियां झेल रहा था वो 50 दिन तक गायब रही। MSME तब दिखा जब सरकार के द्वारा दिखाया गया
आज वित्त मंत्री जी का डिटेल भाषण था , MSME की परिभाषा बदल दी गयी है और उन पर 3 लाख करोड़ का राहत पैकेज, स्ट्रेस MSME को 40000 करोड़ का लोन पैकेज, DISCOM को 90000 करोड़ की फौरी राहत मुख्य घोषणायें रही। इस राहत पैकेज की आपकी मजबूरियां हैं,

पहला परिभाषा बदलना जिसमें MSME की आर्थिक और निवेश क्षमता को बढ़ाकर पेश किया गया – घटती निवेश क्षमता औऱ साख के बीच ये कदम बहुत सराहनीय नही है बल्कि मध्यम और बड़ी व्यापार संस्थायें इसका गलत फायदा उठा कर छोटे शहरों और कस्बो में गलत तरीके की व्यापार संभावनाओ को जन्म दे सकते है।

दूसरा, Discom पर ध्यान दिया गया लेकिन केवल कोरोना ही उनकी इस हालत का जिम्मेदार नही है । UDAY योजना सरकार के पिछले टर्म में लागू की गई थी, उसका आकलन भी सरकार को करना चाहिए, हर चीज को कोरोना का चोगा नही पहना सकते। इंफ़्रा से जुड़े कई सेक्टर बर्बादी की कगार पर हैं उन पर DISCOM जितना ध्यान देना जरूरी है।

तीसरी औऱ सबसे बड़ी मजबूरी ये है कि इस समय सरकार को उत्पादन के साथ साथ डिमांड पर भी खर्च करना पड़ेगा। आत्मनिर्भर भारत के 4L (LAND, LABOUR, LOCAL एंड Law) में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण हैं लेकिन वो इतना हासिये पर है कि 50 दिन बाद सरकारों को याद आया कि उनके घर पहुंचने का कुछ बंदोबस्त किया जाए। इस एक कड़ी को हटा देने से तीनों L की कोई जरूरत नही रहेगी। देश में करीब 7 करोड़ मजदूर परिवार है और करीब 15 करोड़ सीधे या परोक्ष रूप से MSME उद्योगों पर आश्रित परिवार है। मजदूर परिवार को मनरेगा के तहत पैसे पहुंचाने का इंतजाम सरकार कर रहीं है ये अच्छा है इससे गांव वापस आ चुके मजदूर कुछ न कुछ काम पा सकेंगे और पैसे को लोकल लोकल प्रोडक्ट पर खर्चा कर सकेंगे। मनरेगा का अपना बजट है जो MSME का 25% है,आशा है बाकी डिमांड समाज के अन्य वर्गों से आएगी लेकिन पैसा उनके पास भी नही है।

तो विडम्बना ये है कि सरकार उत्पादन के लिए तो पैकेज दे रही है लेकिन डिमांड कहाँ से आएगी ये यक्ष प्रश्न है और मुझे डर है कि जब बाज़ार इस लायक हो जायेगा कि वो डिमांड स्वयं पैदा कर सके , तब तक लोकल और MSME पृष्ठभूमि से फिर से गायब हो जायेगे। एक रिपोर्ट है कि हाल में RBI ने रिवर्स रेपो कम किया जिससे बैंक RBI के पास कम पैसा जमा करें लेकिन मार्केट में डिमांड इतनी कम है कि बैंकों के पास लोन लेने बहुत कम एप्पलीकेशन आ रही हैं तो RBI जिसमे 2 लाख करोड़ का स्टिमुलेशन पैकेज lockdown में दिया , उल्टा RBI के पास 8 लाख करोड़ रुपये बैंको द्वारा जमा कराए गए।

और अंत मे एक बहुत सामान्य सा उदाहरण, आज मेरे पास chief manager, RACPC, SBI का फोन आया कि बैंक होमलोन पर टॉपअप लोन दे रही है जिसकी दर 8.6% है, इसको ले लीजिए। अगर जरूरत नही है तो इसको पर्सनल लोन की तरह इस्तेमाल कर लीजिए या इसे लेकर कोई और लोन चुका लीजिये जिसकी दर अमूमन इससे ज्यादा हो। यहाँ बात बैंक की मार्केटिंग की नही हैं, बेहद कम डिमांड की है जो उन मैनेजर साहब को उन कस्टमर से बात करने पर मजबूर कर रहा है जिनसे उन्होंने कभी बात न की हो और उन पर बैंक के प्रेशर को भी समझ सकता हूँ जिसे ऊपर से डिमांड पैदा करने का निर्देश मिला हो और ये डिमांड लोकल और ग्लोबल की परिभाषा नही देखती। इसलिए लोकल और ग्लोबल की चर्चा हालिया स्थिति में बेमानी है।

लेखक: मयंक मिश्रा (कानपुर)

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