भारतीय संस्कृति की परिकल्पना में गीता, गंगा, गायत्री और गाय के महत्व को न भूलें !! Indian Culture

Importance of Cow, Ganga, Geeta, Gayatri in Indian Culture

बात जब भारत या भारतीय संस्कृति (Indian Culture) की जा रही हो तो गाय, गंगा, गायत्री और गीता इन चारों के बिना सम्पूर्ण नही हो सकती है। हमारे निजी जीवन में भी इन चारों का बहुत महत्व है। गाय के महत्व के बारे में कौन नही जानता है। हमारे स्वास्थ्य के लिए गाय का दूध, दही, घी सबसे सर्वोत्तम होता है।

भारत एक कृषि प्रधान देश है और कृषि कार्य हेतु गाय के बछड़े बलशाली बैल बनकर हमारे लिए अन्न पैदा करने के लिए हमारे खेतो में हाड़तोड़ मेहनत करते थे। कृषक अपने घर ,परिवार,खेत के साथ साथ अपने जानवरो को भी देखभाल बहुत प्यार और जिम्मेदारी से करता था। वर्तमान समय में स्थिति एकदम अलग हो गयी है या यूं कहें बेहद सोचनीय हो गई है।

आजकल लोग न तो गाय पालना चाहते हैं और जबसे खेती ट्रैक्टर से होने लगी तबसे न तो उनके बछड़ो की कोई कीमत रह गई है नतीजन सरंक्षण के अभाव में इनकी हालत अत्यंत दयनीय हो गयी है। सड़को पर खुला घूमने के कारण आये दिन इनसे टकराकर एक्सीडेंट होते रहते हैं जिससे कई बार इनकी मृत्यु हो जाती या गम्भीर रूप से घायल हो जाते हैं । सड़को पर पड़ी सड़ी गली चीजे, प्लास्टिक इत्यादि खाकर ये बीमार पड़ते हैं या तड़प तड़प कर मर जाते हैं।(Indian Culture)

एक तरफ हम सब हिंदुस्तान की परिकल्पना गीता, गंगा, गायत्री और गाय के बिना अधूरी मानते हैं, गौरक्षा हेतु सभी तलवार लिए तत्पर रहते हैं और वही दूसरी तरफ हम खुद ही गायों व गौबंश को मौत के मुह में धकेलने से बाज नही आते हैं।

अभी हाल में ही एक न्यूज पेपर की कटिंग में पढ़ा कि गाय के बछड़े को छोड़ने के आरोप में एक आदमी का लोगो ने मुह काला किया मारा पीटा व पूरे गांव में घुमाया। ठीक ऐसे ही कुछ दिन पहले दो खबर हमारे ही गांव के आस पास की थी जिसमे दो परिवार के ऊपर गौहत्या का आरोप लगा कर उन्हें गांव से बहिष्कृत किया गया और प्रायश्चित के नाम पर उनसे इतना खर्च करवाया गया कि दोनों परिवार सड़क पर आ गए। (Indian Culture)

बाकियो का तो पता नहीं लेकिन जो घटनाएं हमने अपनी आंखों से देखी थी उसमें तो लोगो के दिलो में गौवंश के लिए हमदर्दी कम थी बल्कि दोषी परिवार के लिए दुश्मनी खुन्नस अधिक थी जो प्रायश्चित की आड़ में निकाली गई थी। इन सब घटनाओं को देखकर, सुनकर,पढ़कर हमारे मन में एक ही सवाल आता है कि क्या लोगो को मार देने से या प्रायश्चित जैसा दण्ड देने से गौवंश की रक्षा हम सब कर लेंगे या कोई ठोस कदम उठाने होंगे हम सब को मिलकर कुछ करना होगा?

इस समय मैं पंजाब में रहती हूं यहां हमने लगभग हर दुकान के काउंटर पर गौसेवा के लिए एक गुल्लक रखा देखा जिसमे दुकानदार रोजाना सुबह दस रुपये गौसेवा के नाम पर डालते हैं । जब उनसे इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि मैंम दस रुपये रोज गाय माता के नाम पर निकालने से हम गरीब तो हो नही जायेगे जबकि यही छोटी सी रकम जुड़ जुड़ कर एक बडी रकम बन जाती है और हर महीने जिसकी मदद से हम सब न जाने कितनी गाय बछड़ो के देखभाल और खाने पीने की व्यवस्था कर सकते हैं। तो भाईयो आप सब गाय के नाम पर इतना सब लिखते हो सोचते हो लेकिन कुछ करते भी हो ? (Indian Culture)

यदि नही करते हो तो अबसे कुछ करो। जिससे कुछ सकारात्मक बदलाव हो सके।

प्रशासन की तरफ से प्लास्टिक थैलियों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी गई है इसके बावजूद भी इन थैलियों का धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है और इन थैलियों के इस्तेमाल में हम सब लोग ही आगे हैं क्योकि जब उपयोग बन्द हो जाएगा तो उत्पादन स्वतः बन्द हो जाएगा जब मांग घट जाएगी तो बननी बन्द हो जाएगी लेकिन नही हम लोग इतने स्टैंडर्ड हो गए हैं कि जूट का थैला लेकर चलने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं।

कल मैं बाजार गयी तो देखा कि बाजार में बड़ी हलचल हो रही है थोड़ी देर तक तो कुछ समझ में नही आया लेकिन बाद में पता चला कि नगरपालिका वाले सबकी दुकानों से प्लास्टिक की थैली व प्लास्टिक के बने सामान उठाकर अपनी गाड़ी में डालकर ले जा रहे हैं देखकर दिल को बड़ा अच्छा लगा खैर अच्छा तो दो दिन पहले भी लगा था जब न्यूज पेपर में पढ़ा था कि कुछ लोगो ने मिलकर चंडीगढ़ को प्लास्टिक मुक्त कराने का संकल्प लिया है लेकिन उसी न्यूज पेपर के दूसरे पेज पर ये भी खबर थी कि एक गाय का ऑपरेशन करके उसके पेट से पन्द्रह किलो प्लास्टिक निकाला गया है। (Indian Culture)

खैर हमे कुछ और नही कहना है बस इतना कहना है कि जब तक हम आप मिलकर प्रयास नही करेगे तब तक सरकार चाहे जितना पाबंदी लगा ले योजना बना ले सफल नही हो सकता है जरूरी है कि हम सब आगे आये और अपने शहर को प्लास्टिक मुक्त बनाकर अपने गौवंस को बचाये। शादी ब्याह या अन्य किसी कार्यक्रम में प्लास्टिक की प्लेट, गिलास के बजाय पत्तो की बनी पत्तलों, दोने, व मिट्टी के कुल्हड़ का उपयोग करे।

घर से जूट या कपड़े का बने थैले में सब्जी या अन्य घर की जरूरी चीजो को खरीद कर लाये।

बचे हुए खाने को, फलों सब्जियों के छिलके को प्लास्टिक की थैली में बांधकर कूड़ेदान में न फेंके बल्कि किसी खुले स्थान पर रख दे या कागज में लपेटकर डाले। अच्छा लगे तो शेयर अवश्य कीजिये।

लेखिका: अरुणिमा सिंह