जिन्दगी की करवटें – एक मासूम लड़की की कहानी

life of innocent girl and marriage

कम उम्र में विवाह होने पर लड़कियां न स्वयं का ध्यान रख पातीं है, न परिवार का, न जल्द जन्में बच्चे को सही पोषण मिल पाता है। फिर भी माँ-बाप या रिश्तेदार कम उम्र में ही विवाह करके मुक्ति पाना चाहते हैं। ऐसा ही माया के साथ हुआ। माया अभी नौवीं कक्षा मे पढ़ रही थी जब उसके माँ – मामा ने उसका विवाह तय कर दिया,वह भी माया से बीस वर्ष बड़े आदमी के साथ। रिश्ता अच्छा है, लड़का अमीर है ..आप कह सकते हैं कि मामा-मामी ने प्रपार्टी की लालच मे लड़की को बेच दिया।इस विवाह होने के बदले मामा को काफ़ी धन मिला,क्योंकि शरद की तीसरी शादी हो रही थी माया के संग,जबकि शरद की पहली बीबी से एक बेटी थीं जो माया के उम्र की थी ।

क्या किस्मत थी माया की दुनिया के कसाईयों से अंजान अपने ही मामा-मामी की लालच ने उसे एक अधेड़ के हाथों बेच दिया। उसकी जिन्दगी को नर्क बना दिया तब जब वह ससुराल गयी। उसके सपने सब मिट्टी हो गए। क्योंकि शादी करने का उद्देश्य शरद का सिर्फ़ बच्चे पैदा करने का था, उसे बीवी नहीं मशीन चाहिए थी और वो मशीन जो लड़का(बेटा) पैदा कर सके उसके लिए। मशीन(माया) जल्दी कार्य करे इसलिए माया को दवाएं दी गयीं क्योंकि माया की उम्र महज सोलह वर्ष ही थी साथ ही वह बहुत कमजोर थी, विवाह होने के साल भर ही बाद माया ने एक बेटी को जन्म दिया, बेटी को जन्म क्या दिया उसके सर पर जैसे पहाड़ गिर गया।माया की सास व पति ने उसको तरह तरह की यातनाएं देना प्रराम्भ कर दिया जिससे तंग आकर वह मायके भाग जाया करती थीं। महज सोलह साल की लड़की कसाईयों के हाथ का खिलौना बनकर रह गयी थी, ससुराल वालों का जब मन होता कुचलते-मसलते।

माया जब मायके चली जाए तो उसका पति शरद उसे लेने पहुंच जाया करता था उसके मामा-मामी माया को किसी भी तरह बहला-फुसलाकर शरद के साथ जाने को मनाने लगते और उसे मजबूरन उसके साथ लौटना पड़ता, माया स्वयं मासूम बच्ची और उसके पास एक नवजात शिशु साथ में दंरिदा पति जो एक मौका नहीं छोड़ता था उसे ताना देना का,यातना देने का,उसे बुरी तरह से मारता-पीटता जैसे एक बच्चे को मारा जाता हो जिसने कोई बड़ा अपराध कर दिया हो शायद कोई माता-पिता भी इस तरह अपनी औलाद को नहीं मारते होंगे, शायद सभी मर्द औरत पर हाथ उठाते वक्त उस औरत को इतना छोटा समझ लेते हैं मानो वह अभी छोटा बच्चा हो। वक्त का पहिया घुमता रहा माया की तकलीफें कम होने के बजाय बढ़ गयी,वह फिर से माँ बनीं अफसोस इस बार भी उसने बेटी को ही जन्म दिया, आप सोच सकते हैं कि अब उसके साथ कैसा व्यवहार होता होगा ,पूर्व से भी खतरनाक। माया की सास के जुल्म अब मासूम बच्चियों पर प्रराम्भ हो गए ,वह माया की बेटी को कोसती,यहाँ तक की उसे कुछ खिला कर मारने की कोशिश की अचानक बच्ची की हालत खराब हो गयी,माया किसी भी तरह अपनी बच्ची को हॅास्पिटल लेकर पहुँचीं, बच्ची बड़ी जद्दोजहद के बात बच गई लेकिन माया अब टूट चुकी थी विवाह होने बाद अब उसका एक पल रहना ससुराल में मुश्किल हो रहा था क्योंकि उसका डर बढ़ गया था कहीं उसके बच्चियों को ससुराल वाले मार न दें। माया की माँ बच्ची को देखने गयी थी तभी उसने फैसला किया कि वह यहाँ नहीं रहेगी उसे ले चलें अपने साथ,माँ उसे अपने साथ ले तो आयी लेकिन कुछ ही दिन बाद उसका पति फिर पहुंच गया उसे लेने।किन्तु इस बार नजारा कुछ और था उसके ऊपर हुए जुल्म को देखकर मोहल्ले वालों ने माया को शरद के साथ जाने नहीं दिया और उसे गालियां देकर मोहल्ले से भगा दिया।

इधर शरद माया को जब ले जाने मे असफल रहा तो उसने माया पर चरित्रहीन व चोरी का इल्जाम लगा दिया, शरद ने कहा कि माया ने उसके घर से जेवर व रूपये चुराए है फिर मायके चली गई इस मुद्दे का सहारा लेते हुए माया पर केस कर दिया। इस स्थिति में माया का मोहल्ले वालों ने साथ दिया ,सभी ने माया के पक्ष मे गवाही दी कि यह आरोप बेबुनियाद है माया के ऊपर जुल्म करता था शरद इसलिए वह मायके आयी है। फैसला माया के हक में आया और इसी वक्त माया कि इच्छा पूछी गयी शरद के साथ रहने के लिए माया ने उसकी घिनौनी हरकत के बाद शरद से तलाक की उसी वक्त मंजूरी दे दी। केस दर्ज हो गया तलाक का और वह अपनी दो बेटियों के साथ माँ के पास आ गयी,अब उसकी जिम्मेदारियां बढ़ गयी क्योंकि कमाने वाली सिर्फ़ माँ थी।माया ज्यादा पढ़ नहीं सकीं थी हाईस्कूल की थी किन्तु वो भी डिग्री उसके पति ने जला दिया था, माया की माँ ने अपने संग फैक्टरी में काम पर लगा लिया जिससे कुछ आमदनी होने लगी।

धीरे-धीरे वक्त बीतता गया माया की छोटी बहन की शादी एक अच्छे परिवार में हुई,लड़का अच्छी नौकरी वाला था, जिसने परिवार का बेटा बनकर परिवार को सम्भाल लिया,माया की बेटियां बड़ी हो रही थी एक दस वर्ष की छोटी आठ वर्ष की। इधर माया का केस चलते दस वर्ष हो गए थे और माया को तलाक मिल गया ।तभी माया की दोस्ती एक लड़की से हुई जिसने उसकी जीवन को नया स्वरूप दे दिया, अरुणा ने माया को सुझाव दिया कि वह कोई कोर्स कर ले जिससे वह अच्छी जगह कार्य कर सकती हैं किन्तु माया के पास धन का अभाव था और फीस में सत्तर हजार की मांग थी इसलिए उसने मना कर दिया तब अरूणा ने कहा कि चलो मैं मदद कर दूंगी कुछ और तुम करों इस तरह से अरुणा ने माया को सहायता प्रदान की और कुछ माया ने जीजा से मदद लेकर कोर्स कर लिया साथ ही पार्ट टाइम नौकरी छोड़कर अपनी दोस्त अरूणा के कार्य में सहायता करने लगी इस तरह माया की जिन्दगी ने नया रूप लेना शुरू कर दिया वह बंदिशों मे बंधक बनी लड़की अपना इतिहास रचने के लिए जुझारू थी उसे कामयाबी भी मिल रही थी। अचानक एक रोज उसका सामना एक लड़के से हुआ जोकि उसके सामने ही मकान में किराए पर रहने आया था .. मनीष

धीरे-धीरे माया और मनीष मे दोस्ती हो गयी उसने अरूणा को सारी बातें साझा की और कहा कि मनीष उससे विवाह करना चाहता है वह उसके परिवार को भी अपनाएगा। अरुणा खुश हुई उसने कहा-यह तो अच्छी बात है कि वह तुम्हारे विषय में सबकुछ जानते हुए तुम्हें प्यार करता है और शादी करना चाहता है तो तुम्हें न नहीं कहना चाहिए । माया ने कहा माँ नहीं मानेगी शायद, इधर मनीष माया का हमउम्र ही था अच्छी नौकरी करता था, लड़का अमीर था। माया को वह खोना नहीं चाहता था इस डर से उसने माया के घर मे बात कर ली, माया की माँ ने विवाह होने के लिए अपनी सहमति व्यक्त कर दी। माया व मनीष का विवाह हो गया उसका जीवन सुखमय बीत रहा है। उसने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी जंग जीत ली क्योंकि उसने अपने बेटियों को एक पिता,एक दोस्त देकर उनके भविष्य को सुरक्षित कर दिया क्योंकि अक्सर बिना माता व पिता के बच्चियों को समाज हवस की दृष्टि से देखता है।बच्चियों को उनका भविष्य मिला जिसके संग व हँसी-खुशी है।इसलिए जिन्दगी में जब भी कोई घटना घटे थकिए नहीं,रूकिए नहीं क्योंकि जीवन में कर्म करने से ही स्वरूप बदलता है जिससे एक नया अध्याय रचता जाता है।

लेखिका – अरुणिमा सिंह

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