एक इश्क ऐसा भी – कौन जानता था पत्नी यूँ अकेला छोड़कर चली जायेगी
एक एक करके घर आये सभी मेहमान जा चुके थे. अब बस घर में सुहानी और उसके बाबू जी हरिदास ही बचे थे. मम्मी के यूँ अचानक परलोक सिधार जाने से जहां सुहानी को कोई सहारा नजर नहीं आ रहा था वहीँ हरिदास जी तो जैसे बेजान से बूत मात्र बनकर रह गए थे. आज ही तो तेरहवी हुई थी पत्रिका की. कौन जानता था की पचास साल तक हर पल साथ देने वाली उनकी पत्नी पत्रिका यूँ अकेला छोड़कर चली जायेगी. कुछ दिखाई नहीं दे रहा था घर में. सुहानी अपने बाबूजी को छोड़कर तो नहीं जा सकती इस हाल में इसलिए उसने अपने पति को यह कहकर वापस भेज दिया की वह कुछ दिन बाबूजी के साथ रहकर चली जायेगी.
बाबू जी की हालत बहुत ही अजीब सी हो गई थी. खाने पीने को कहने के नाम पर चिढ जाते थे. हर समय पत्रिका की तस्वीर को ही निहारते रहते. सुहानी कुछ बनाती तो घंटों थाली आगे रखकर रोते रहते. बाबूजी की हालत सुहानी से देखी नहीं जाती थी वह भी रोने लगती थी. वह आखिर वह भी कब तक वहां रूकती अपना घर छोड़कर पतिदेव के लगातार फोन आ रहे थे. बच्चों के एग्जाम सिर पर थे और एक दिन बाबू जी अकेला छोड़कर सुहानी भारी मन से अपनी ससुराल चली गई उसने बाबू जी से बहुत कहा साथ चलने को मगर उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया.बाबू जी को घर के प्रत्येक कमरे से और हर चीज में पत्रिका ही दिखाई देती थीं.
जब यादों की पीड़ा झेलना मुश्किल हो जाता तो बिलख बिलख कर रोने लगते, सुहानी के जाते ही घर एकदम सूना हो गया. उधर सुहानी भी परेशान रहती थी इसीलिए दिन में कई बार बाबूजी को फोन कर लेती थी. कई महीने गुजर गए यूँ ही रोते बिलखते ऐसे में स्वास्थ्य भी लगातार गिरता ही जा रहा था. डाक्टर ने उनको सुझाव दिया की अगर वो अकेले रहेंगे तो कभी भी स्वस्थ नहीं रह पाएंगे ऐसे में लोगों से मिलना जुलना और खुश रहना अत्यंत आवश्यक है. इस पर उन्होंने कहा की अब वो जीना ही नहीं चाहते. जब डॉक्टर ने इसको इनकी स्वार्थपरिता कहा तो उनको अपनी गलती का एहसास हुआ. अब सुबह को मॉर्निंग वॉक के लिए भी जाने लगे थे, वहां उनको उनकी उम्र के कई सीनियर सिटीजन मिलते जिन सबकी समस्याएं कमोबेश उनके जैसे ही थीं. अब उन्होंने सबको अपने घर बुलाना शुरू कर दिया. सभी बुजुर्ग बैठकर गपशप करते और हंसी मजाक भी जिससे सबका मन लगता था.
धीरे धीरे सभी एक परिवार से हो गए. कई बुजुर्ग जो अपने घरवालों के व्यवहार से परेशान हो गए थे, उन्ही के घर आकर रहने लगे थे. सब मिलकर एक दुसरे की सहायता करते थे और देखभाल भी सबको दोबारा जिंदगी से इश्क जो हो गया था.
लेखिका: राशि सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश