गौना – बिदाई रस्म की एक सत्य कहानी

Gauna ki ek satya Kahani hai

शाम को थकी हारी सुधा ऑफिस से घर लौटी पर्स सोफे पर फेंक कर टॉवल उठाया और फ्रेश होने के लिए बाथरूम में घुस गई। फ्रेश होकर वापस आयी मोबाईल उठाया तो देखा, मम्मी की दो मिस्ड कॉल आयी थी। जबसे जॉब के सिलसिले में सुधा घर से दूर शहर में रहने लगी थी रोज शाम को मम्मी की कॉल आना और घर परिवार से लेकर आस पड़ोस के लोगो के बारे में बात करना हाल पूछना उसकी रूटीन बन गई थी।

मोबाइल पर मिस्ड कॉल देखकर सुधा ने मम्मी को बैक कॉल किया और बात करनी लगी, मम्मी के हाल चाल से शुरू हुई बात सहेलियों तक पहुच गयी अचानक सुधा को अपने साथ कालेज में पढ़ने वाली बिंदु की याद आ गई उसने मम्मी से बिंदु के बारे में पूछा तो मम्मी ने बताया कि बेटा “बिंदु का गौना हो गया है और वो अपने ससुराल गयी है!” ये सुनकर सुधा शॉक्ड रह गई और बोली” ये कैसे हो सकता है मम्मी सुधा तो इस शादी, इस रिश्ते को कभी मानती ही नहीं थी फिर ये सब कैसे हुआ” मम्मी एक गहरी सांस लेकर बोली “पता नहीं बेटा ये तो उसके घर वाले जाने की कैसे किया ये सब और क्यों किया।”
सुधा ने मम्मी से बात करके फोन काट दिया और सर सोफे पर टिका कर बैठ गई बिंदु के बारे में सुनकर उसका मूड ऑफ़ हो गया था।

गौना एक ऐसा रिवाज जो लगभग खत्म हो चुका है लेकिन अभी भी कही कही गाँवो और कुछ जगहों पर मौजूद है।बच्चो की छोटी उम्र में शादी कर दी जाती है और लड़की की विदाई नही होती ।जब लड़की सयानी हो जाती है तब उसकी बिदाई की जाती है और इस बिदाई रस्म को गौना बोलते हैं।
छोटे छोटे बच्चे जिन्हें शादी का मतलब भी नही पता उन्हें शादी जैसे बन्धन में बांध दिया जाता है और माँ बाप अपनी जिम्मेदारी निभा कर निश्चिन्त हो जाते हैं। जबकि बचपन में हुई इस शादी को कानूनी तौर पर भी वैध नही माना जा सकता। लेकिन फिर भी लोग न जाने क्यों इस तरह गौना के रीति रिवाजों को अब तक मानते हैं और अपने मासूम बच्चों की जिंदगी को ” जहन्नुम” बना देते हैं
कुछ ऐसा ही बिंदु के साथ हुआ था।

7साल की उम्र में उसकी शादी कर दी गई जब उसको शादी का मतलब भी नहीं पता था और समय के साथ साथ बिंदु इस रिश्ते को न सिर्फ नकार चुकी थी अपितु भूल भी चुकी थी उसने अपना पूरा ध्यान सिर्फ पढ़ाई पर लगा दिया था और इन सबके बारे में कब का सोचना छोड़ चुकी थी लेकिन अब अचानक उसका गौना ये सब क्या ? कैसे ?
सुधा के मन में अनगिनत सवाल घूम रहे थे और जिसका जबाव सिर्फ बिंदु दे सकती थी।
असमंजस में पड़ी सुधा ने उसी समय बिंदु को कॉल किया ।बिंदु ने फोन उठाया और उसकी आवाज सुनकर सुधा पहचान ही नहीं पाई कि ये बिंदु की आवाज है ! न पहले जैसी खनक थी और न ही चहक थी।
फोन उठते ही सुधा बरस पड़ी बिंदु पर अनगिनत सवाल कर दिए “बिंदु तू ठीक है न”? तू ने इस रिश्ते के लिए हाँ कैसे की ? तू क्यों गयी वहाँ ? ये सब कैसे हुआ ? सुधा ने सवालों के बौछार कर दी थी और उधर से सिर्फ ख़ामोशी थी ।
सुधा थोड़ी देर चुप रहकर फिर बोली “बिंदु तू सुन रही है न”
बिंदु बोली” हा सुधा सुन रही हूं!
तो तू कुछ बोल क्यों नहीं रही है!
बिंदु बोली कुछ चीजे हमारे बस में नही होती, सुधा कुछ चीजो को हमे परिवार की ख़ुशी और उनके इज्जत के लिए मानना पड़ता है और मैंने भी वही किया है।
लेकिन तू अब करेगी क्या ? ये तेरी जिंदगी है बिंदु और कोई चीज या सामान नही जिसे तू परिवार की इज्जत और ख़ुशी के लिए तबाह करने पर तुली है ,मैं मानती हूं परिवार की ख़ुशी के लिए हमें कुछ फैसले मानने चाहिये लेकिन तेरी ख़ुशी , तेरी जिंदगी का क्या ? सुधा हैरान होती पूछ रही थी।
बिंदु गहरी सांस लेकर बोली “सुधा मुझे नहीं पता मैं क्या करने वाली हूं, जब तक झेल पाऊँगी झेलूंगी वरना खत्म कर दूँगी इस रिश्ते के साथ साथ अपनी जिंदगी भी !
यह सुनकर सुधा बिफर पड़ी बिंदु ये सब क्या है ? बिंदु तू कब से इतनी कमजोर हो गई है ? कबसे इतनी कायरों वाली हरकते करने लगी है? खबरदार जो तूने कुछ भी ऐसा किया तो मै कभी माफ नहीं करुँगी तुम्हे ।

ये सुनकर बिंदु रोने लगी फूट फूट कर और बोली तो क्या करू सुधा तू ही बता मैं पढ़ी लिखी हूं, पार्ट टाइम जॉब करके अपना खुद का खर्च उठाकर पढ़ रही हूं अच्छे बुरे की समझ रखती हूं इसके विपरीत मेरा पति एक अक्षर भी नहीं पढ़ा है ,एकदम अक्खड़ मिजाज एकदम गवांर है पैसो की डींगें मारता रहता है और कोई काम नहीं करता उसे तो बात करने तक की तमीज नही है कैसे रहूं मैं वहाँ तू ही बता मेरे माँ बाप ने लड़के के साथ नही उसके जायदाद के साथ मेरी शादी की है! लेकिन मुझे पैसे नहीं बल्कि जिंदगी बिताने के लिए अपने साथ साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाला हमसफ़र चाहिये।
सुधा ये सब सुनकर बहुत परेशान हो गई और बिंदु को बहुत समझाया और आत्महत्या जैसा कदम उठाने के लिए डांटा भी और विंदू को पढ़ाई जारी रखने और आगे चलकर जॉब करने और अपने पैर पर खड़े होने के लिए समझाया और भारी मन से फोन काट दिया।
ये कहानी सिर्फ कहानी नही है एक सत्य घटना है लेकिन हमने पात्र के नाम बदल दिए हैं।

लेखिका: अरुणिमा सिंह (उर्मिला)

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