लॉकडाउन (Lockdown) का एक नज़ारा – कानपुर से कन्नौज यात्रा

Lockdown Kannauj to Kanpur

आज सुबह ऑफिस जाते वक्त कुछ डर था लेकिन हिम्मत भी थी। डर ये कि पिछली बार आई. डी. कार्ड दिखाने के बाद भी उत्तरीपुरा से उल्टे पांव लौटा दिए गए थे और हिम्मत इसकी कि इस बार मेरे पास कानपुर और कन्नौज दोनो के ट्रांजिट पास थे।
कानपुर के सिटी मैजिस्ट्रेट ने Lockdown में केवल कार से यात्रा करने की अनुमति दी थी और पास पे कार का नंबर भी अंकित था। कन्नौज के जिलाधिकारी जी ने जो पास दिया उस पर गाड़ी का नंबर तो नही लेकिन मेरी फोटो जरूर लगा दी।
खैर इन दो ब्रह्मास्त्रों के साथ निकल पड़ा और जाना इसलिए बहुत जरूरी था कि दो बैंक सेवा बाधित थी और साथ ही आज दूरसंचार मंत्री महोदय की उत्तर प्रदेश के मुख्य महा प्रबंधक जी के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग थी। कुछ प्राइवेट कनेक्शन भी थे जो वर्क फ्रॉम होम के लिए जरूरी थे।
खैर जब मैं घर से निकला तो पूर्वाग्रह था कि सूनसान रोड मिलेगा लेकिन वो गलत निकला। कल्याणपुर, मंधना और चौबेपुर तक बाजार भरे पूरे दिखे, अच्छी खासी भीड़ थी। लॉकडाउन के बावजूद कोई सोशल डिस्टेंसिंग नही, कोई बचाव के साधन नही, पूरी तरह उन्मत्त ग्राहक और दुकानदार। कानपुर में कर्फ्यू में सुबह 11 बजे तक छूट है जिसकी छूट लेकर लोग जरूरी कामो के अलावा शहर दर्शन और अन्य काम निपटा आते है।
शिवराजपुर आते आते दस बज चुके थे और अब मेरे आस पास काफी दूधिये दिख रहे थे जो शायद सुबह का काम निपटा कर वापस लौट रहे हो। अन्य दिनों में ये ट्रैन से चलते है और कानपुर सुबह 9.30 बजे आने वाली पैसेंजर ट्रेन को लोग दूध वाली ट्रेन कहते है क्योकि खिड़कियों से केवल और केवल दूध के डिब्बे लटके होते है और गेट पर दूधिये। आज ये सब बाइक्स पर लटके थे।

कर दिया मजबूर कितना एक अनदेखे दुश्मन ने, रहा मजबूर गांव को छोड़ चमक इन शहरों की !
कैद हुए हम घरों में अपने, जान अपनी बचाने को, क्या करे मजबूर बेचारा, नहीं मिला जिसे कुछ खाने को !!
नन्हे बच्चे बिलख रहे हैं एक वक्त की रोटी को, क्या समझेंगे वो बेचारे इस लॉक डाउन की गुत्थी को !
शुक्र है उस खुदा का की हम चैन से घ्हारों में सोते हैं, फिक्र तो बस उनकी होती है जो भूख से प्राणो को खोते हैं !!
कैसी विडम्बना है ईश तेरी, कैसा तेरा खेल है ये, एक तरफ से भूख की मार और दूसरी ओर शत्रु अभेद्य ये !
कर तू ही चमत्कार मेरे प्रभुवर अब की, हर इंसान कुछ पल तो तुझको ध्याये !!
ध्यान वंदना जो तेरी हो वो कुछ ऐसी हो मेरे ईश, शुक्र करे हर इंसान तेरा जब मिले उसे कुछ पल सुकून की नींद !!

गरिमा

उत्तरीपुरा की रेलवे क्रासिंग जिसे आने और जाने में कुल चार बार क्रोस करना होता है, बिना आश्चर्य के आज एक भी बार बंद नही मिली क्योकि ट्रैन ही नही चल रही। बीच में एक आध लगेज ट्रैन निकलती होंगी लेकिन मुझे नही दिखी।
बिल्हौर नगर पालिका परिषद का क्षेत्र है एक बड़ा कस्बा है कुछ भीड़ दिखी जो छटती सी नज़र आ रही थी। ये कस्बा एक ओर कन्नौज तो दूसरी ओर हरदोई और उन्नाव को कानपुर से जोड़ता है इसलिए बहुत महत्वपूर्ण जंक्शन है यहां जंक्शन पॉइंट पर बैरिकेडिंग और मुस्तैद पुलिस दिखी। मैंने अपनी गाड़ी पर अपनी सेवा से जुड़ी सूचनाएं चिपका रखी थी शायद इसलिए मुझे नही रोका गया लेकिन दोपहिया वाहनों से पूछताछ होती दिखी। क्योकि 11 नही बजे थे इसलिए ये पूछताछ भी शायद उतनी शख्त नही होगी। कुछ चार पहिया वाहनों पर भी पुलिस नज़र गड़ाये दिखी।
आगे आरोल मकनपुर आता है ये इलाका काफी सिद्ध है यहाँ सालाना मकनपुर उर्स का मेला लगता है साथ ही इससे लगता हुआ आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे है, पिछली प्रदेश सरकार की देन ये एक्सप्रेस वे आज की तारिख में भारत का सबसे बड़ा एक्सप्रेस वे है जिसे पूर्वांचल एक्सप्रेस वे द्वारा शीघ्र ही प्रतिस्थापित किया जाना संभावित है।

दूर स्थानों से कन्नौज और कानपुर जाने वालों के लिए ये एंट्री पॉइंट है इसलिए यहाँ भी बैरिकेडिंग और पुलिस बल दिखा।
आगे कन्नौज की सीमा शुरू होती है वहां एक पुलिस वाला आधी सड़क पर बाइक आड़ी करके लगाए था और आने जाने वालों को आते जाते देख रहा था लेकिन रोकने की मुद्रा में नही था। बाइक आड़ी लगा कर शायद वो राहगीरों का आत्मविश्वास भांप रहा था और कुछ हद तक सफल भी था क्योकि दो बाइक वालो को मैंने वापस लौटते देखा।
कन्नौज बहुत छोटा शहर है कभी ये भारत की राजधानी था, राजा हर्ष और जयचंद ने यहां शासन किया है। प्राचीन इतिहास में पाल, प्रतिहार और राष्ट्रकूटो ने इस पर शासन करने के लिए आपस मे युद्ध लड़े। हुमायूं यही से हार कर भारत छोड़ने को विवश हो गया था। हमेशा से ये बेशकीमती सुगंधित द्रव्यों और इत्र के लिए मशहूर रहा है। यहां पर चप्पे चप्पे पर पुलिस दिखी जो सतर्क दिख रही थी। जब आफिस पहुंचा तब तक 10.55 हो गए थे लोगो को घर के अन्दर रहने के सड़को पर मुनादी कराई जा रही थी। सब्जी और फल का एक बड़ा ट्रक करीब 11.30 पर मुनादी करते हुए सड़को पर टहलता मिला कि जिसे सामान लेना हो घर के दरवाजे पर आ जाये।
ऑफिस पहुंचने के बाद मेरे सहयोगी स्टाफ अतिरिक्त ऊर्जा से लबरेज दिखे, सब मास्क लगाए थे। काम को लेकर अपनी अपनी समस्याएं लेकर मेरे पास आये कुछ हल हुई कुछ नही। सबको बता दिया गया कि बिना काम घर से न निकले लेकिन अगर किसी उपभोक्ता को समस्या है तो बिल्कुल निकले सावधानी के साथ। खैर सुबह से कब शाम हो गयी पता नही चला लेकिन लौटते वक्त जो पता चला वो दुखद था

कोरोना वायरस के चलते Lockdown के कारण सैकड़ो लोग पैदल कानपुर की ओर जाते दिखे, कुछ कन्नौज की ओर भी आ रहे थे। आगे जाते हुए ये लोग बार बार पीछे देख रहे थे, इस आशा में कि कोई उन्हें इस पदयात्रा जो लेनिन और गांधी की पदयात्रा से बहुत लंबी और निराशा ओढ़े हुए थी, से मुक्ति दिला दे। कुछ कदम लड़खड़ा भी रहे थे। कुछ लोग याचना लिए हुए लगभग बीच सड़क पर खड़े होकर लिफ्ट मांग रहे थे। शेरशाह सूरी की बनाई GT रोड बहुत चौड़ी नही है, दो बड़ी गाड़िया एक साथ नही निकल सकती है और ऐसे में सड़क पर दोनों तरफ पैदल राहगीरों की भीड़ जो बदहवास से चले जा रहे थे , किसी दुर्घटना को बुलावा दे सकते है। कई बार मुझे अतिरिक्त सतर्क होना पड़ा। मन ने चाहा कि कुछ को उनकी पीड़ा से मुक्त कर दिया जाए लेकिन प्रशासनिक और शासनिक दोनो रूप से मजबूर था, बाहर खड़े उन लोगो के दिल की बात जानते हुए भी।
कुछ अखबार वाले जरूरी सेवा वाले बड़े वाहन भेड़ बकरियों की तरह भरे राहगीरों के साथ भी दिखे।
पिछले दो तीन दिनों से मजदूरों और मजबूरों के इस पलायन को देख रहा हूँ और उन लोगो को भी जो Lockdown होकर घर में बढ़िया पैर पसार कर इसे राजनीतिक रूप दे रहे है, शायद उनके मन में हर समय राजनीतिक इलेक्शन चल रहा होता है। कभी इन लोगो की व्यथा समझने की कोशिश ही नही की गई जो Lockdown का समय केवल पैदल चल कर ही बिताने वाले है। क्या कारण है कि सरकारो की इतनी कोशिश और घोषणाओं के बाद भी ये बस चले जा रहे है क्या ये पागल है , क्या ये देश द्रोही है या कारण कुछ और है। अगर ये कुछ वाला कारण आप समझ जाते तो आप भी बस चल रहे होते।

लेखक: मयंक मिश्रा (कानपुर)