आर्थिक और वैश्विक परिस्तिथियों पर कोरोना के प्रभाव एवं अनेक विचार
आज कल पेपर पढ़ना बड़ी बोरियत का काम हो गया है कब शुरू होता है और कब खत्म समझ नही आता और लगता है कि कुछ न्यूज़ मिली ही नही। कोरोना ने रिपोर्टिंग, Corona Effects के विषयों को काफी तंग कर दिया है। बहरहाल कुछ खास न्यूज़ पर मेरा ध्यान गया जिन्होंने कुछ सोचने का मौका दिया। दीगर है कि ये भी कोरोना के इर्द गिर्द ही है, कुछ आम है और कुछ खास।
जानवरो में कोरोना:
अमेरिका के एक चिड़ियाघर में एक शेर को कोरोना संक्रमित पाया गया और संक्रमण का कारण मानव से जानवर में इसका फैलाव है। इसी से संबंधित एक रिसर्च जो अभी पब्लिश नही हुई उसने ये बताया कि वैज्ञानिकों ने कुत्ते और बिल्ली के ऊपर कोरोना संक्रमण की घटनाओं को नोट किया जिसमें पाया गया कि कुत्ते सुरक्षित है जबकि बिल्ली कोरोना से संक्रमित हो सकती है। इस रिसर्च की वैद्यता की पुष्टि तो अभी कोई नही कर सकता क्योंकि अभी पब्लिश नही हुई है लेकिन इसके बारे में एक जिम्मेदार इंग्लिश पेपर में छपा तो ऐसी रिसर्च हुई है इस पर विश्वास किया जा सकता है।
5G से कोरोना:
UK में एक हैशटैग चला जिसमे 5G को कोरोना का जिम्मेदार माना गया और ये इतना चर्चित हुआ कि टॉप ट्रेंडिंग लिस्ट मे आ गया। रेडियो फ्रीक्वेंसी किसी वायरस की वाहक हो सकती है ये जरूर भविष्य के वैज्ञानिकों पर छोड़ देना चाहिए और इस पर रोबोट-3 जैसी मूवी या कोई साइंस फ्रिक्शन किताब कहानी लिखी जानी चाहिए। लेकिन इलेक्ट्रिकल सिगनल को RF में बदलने वाला मासूम सा एंटीना सिग्नल के साथ वायरस भेज सकता है, UK जैसे देश में ट्रेंड करना वाकई मानव चरित्र को दर्शाता है जो कमोवेश एक जैसा है।
बात इतनी है कि कुछ पर्यावरणविद UK में पहले से ही 5G का विरोध कर रहे है और इस तरह के हैशटैग नए नही है। हुआवेई (Huawei) जो कि चीन की कंपनी है उसको US पहले ही बैन कर चुका है लेकिन कारण कोरोना नही था, बल्कि डेटा सिक्योरिटी थी या दबे शब्दो मे कहे कि ट्रेड वॉर। हालिया हैशटैग बस चीन और कोरोना का कोकटेल है।
कोरोना से लॉकडाउन और महान मंदी
इस खबर ने सबसे ज्यादा मेरा ध्यान खींचा क्योकि IMF ने कोरोना को 1929-1939 की महान मंदी जैसी स्थिति होने की ओर इशारा किया है जहां अमेरिका में 24 अक्टूबर 1929 को शेयर मार्केट की एक छोटी सी घटना ने पूरे विश्व को महान मंदी की गोद मे बैठा दिया था हालांकि मंदी के पीछे नीतिगत फैसलों की बड़ी भूमिका थी। अमेरिका में 35% से ज्यादा और ब्रिटेन में 29% से ज्यादा बेरोजगारी दर उस युग के कीर्तिमान है और हालिया रिपोर्ट्स बस 19/20 वाली स्थिति की ओर इशारा कर रही है।
भारत तो बेरोजगारी रिपोर्ट पिछले चुनाव के पहले से देना छोड़ चुका है जहां वो पिछले 28 साल का रिकॉर्ड तोड़ चुका था लेकिन भारत के संदर्भ में यदि देखे तो बेरोजगारी के आंकड़े न तब के उपलब्ध है और न अब के। इंडियन एक्सप्रेस के एक लेख मे है कि महान मंदी का दौर केवल आर्थिक नही था सामाजिक भी था। नमक कानून और सविनय अवज्ञा, किसान आंदोलन, प्रान्तीय चुनाव और कांग्रेस के तत्कालीन काम मंदी के बनाये हुए फंदे के इर्द गिर्द ही थे। जर्मनी में हिटलर का उदय भी मंदी के ताने बाने से बना है।
हालिया संदर्भ में क्या ये संभव नही कि आने वाले इलेक्शन किसानों और मजदूरों को लेकर लड़े जाए, राष्ट्रवादी मुद्दों को हाशिये पे लटका दिए जाएं या कही ये भी हो सकता है कि विश्व में कही चुनाव केवल नस्ली जातियों की भलाई को लेकर लड़ा जाए और उग्र राष्ट्रवाद को अपना लिया जाये। खैर ये सब तो जब होगा तब होगा, अभी से क्या माथापच्ची की जाए।
इन सबके बीच ये जरूर हुआ है कि न्यूज़ पेपर्स में एडिटोरियल वाला पन्ना अब लेखकों के ज्यादा गूढ़ विचारों के साथ आता है जिसमे धार्मिक, आर्थिक और वैश्विक परिस्तिथियों पर इस महामारी के प्रभाव के लेख छपते है।
लेखक: मयंक मिश्रा (कानपुर)
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