कविता – तुमसे बेहतर लिखती हूँ, पर जज़्बात तुम्हारे अच्छे हैं
कविता – तुमसे बेहतर लिखती हूँ, पर जज़्बात तुम्हारे अच्छे हैं:
मैं तुमसे बेहतर लिखती हूँ, पर जज़्बात तुम्हारे अच्छे हैं ! मैं तुमसे बेहतर दिखती हूँ, पर अदा तुम्हारी अच्छी है !!
मैं खुश हरदम रहती हूँ, पर मुस्कान तुम्हारी अच्छी है ! मैं अपने उसूलों पर चलती हूँ, पर ज़िद.तुम्हारी अच्छी है !!
मैं एक बेहतर शख्सियत हूँ, पर सीरत तुम्हारी अच्छी है ! मैं आसमान की चाह रखती हूँ, पर उड़ानें तुम्हारी अच्छी है !!
मैं तुमसे बहुत बहस करती हूँ, पर दलीलें तुम्हारी अच्छी है ! मैं तुमसे बेहतर गाती हूँ, पर धुन तुम्हारी अच्छी है !!
मैं गज़ल खूब कहती हूँ, पर तकरीर तुम्हारी अच्छी है ! मैं कितना भी कुछ कहती रहूँ, पर हर बात तुम्हारी अच्छी है !!
कविता – मां बदल रही है:
मां बदल रही है, मां अब दिखती नहीं मैली साडी मे काम करती दिनभर नजर आती है ट्रेंडी जींस पर अपने लिये भी समय निकाल रही है !!
मां बदल रही है, चुल्हे के धुंअे सेअब आंखें नही होती लाल ! स्मार्ट किचन मे अब नयी रेसीपीबनती बेमिसाल, जब मन नही होता स्वीगी से पार्सल मंगवा रही है, सच मां बदल रही है !!
पापा के सामने हरबात पर हाथ नहीं फैलाती है, ना ही सास और पति की मार खाती है ! कंधे से कंधा मिलाकर सारा भार उठा रही है, सच मां बदल रही है !!
पुराने दिनों का राग नही सुनाती, सास ,ननंद,जवाई का नखरा नही लेती ! नही कहती औरत तेरी यही कहानी, बेटे को पराठेऔर बेटी को कराटे सिखा रही है, सच मां अब बदल रही है !!
मां अब हंसती है,नाचती है, मनमर्जीसे जीती है,समय के साथ बदलती है जैसा चाहे रहती है
पर…….बच्चे का रोना सुनते ही थम जाते हैं कदम तब लगता है, क्या सचमुच मां बदल रही है??
मां पूरी बदल रही है, पर उसकी ममता,उसका प्यार नहीं बदला और आज के इस युग में इस बदली हुयी मां की ही जरूरत है…जो समय के साथ, समाज के साथ, बच्चों के साथ, जनरेशन के साथ बदले, क्यों की बदलाव प्रगती की निशानी है !!
साभार: अरुणिमा सिंह (उर्मिला)