जब माँ ने पूछा पाजेब कहाँ गयी – बचपन की बात
उन दिनों की बात है जब मैं मुश्किल से 10 साल की थी और मुझसे छोटा मेरा भाई। हम दोनों जून के महीने की भरी दोपहर में सबके सो जाने पर अक्सर चुपके से तालाब में नहाने जाते थे। एक दिन उसी तरह दोनों भाई बहन तालाब में नहाने गए और तालाब में उतरने से पहले मैंने अपनी चाँदी की दोनों पाजेब निकालकर तालाब के किनारे उगे पौधे पर टांग दिया। तालाब में मिट्टी में पाजेब के निकलने का डर था इसलिये हिफाजत के तौर पर पहले निकाल दिया और भाई बहन तालाब में नहाने लगे। कभी नहाते कभी मछली को हाथ से पकड़ने की नाकाम कोशिश करते, कभी पानी में उगने वाले पौधों से खेलते जीभर कर नहाने के बाद दोनों चुपके से घर आ गए।
अगले दिन जब दोपहर में फिर नहाने गए तो मैंने फिर पाजेब निकालनी चाही तब याद आया कि पाजेब तो कल ही यहाँ छोड़ गई थी। ये याद आते मेरे होश उड़ गए और भाई बहन नहाना छोड़कर पाजेब ढूढ़ने लगे जिसे न तो मिलनी थी और न ही मिली। अब पाजेब खोने के बाद डर के मारे बुरा हाल था बहुत जोर जोर से रोना आ रहा था। एक तो पाजेब खो जाने का डर और ऊपर से अम्मा से डाँट या मार खाने का डर भी था। हम दोनों भाई बहन बिना नहाए घर आ गए और पूरे समय मैं अम्मा के सामने जाने से बचती रही लेकिन वो भी मेरी माँ थी उनको मेरी परेशानी नजर आ गई और साथ मे नजर आ गए मेरे सूने पांव। उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और मेरे डर के मारे गला सूख गया। अम्मा बोली-पाजेब कहाँ गयी। मैंने डरते डरते अटकते अटकते पूरी बात बता दी और अपनी सजा का इंतजार करने लगी। अम्मा थोड़ी देर चुप रही फिर बोली कोई बात नहीं, दूसरी ला दूँगी। मैंने चौककर अम्मा को देखा तो वो फिर बोली कोई बात नहीं दूसरी आ जायेगी।
तब मैंने अपना मुह उनकी गोद में छिपा लिया और फिर डरते डरते बोली कि-अम्मा आपने मुझे डांटा भी नहीं और मारा भी नहीं ,मुझे तो कल से इतना डर लग रहा था चुपके चुपके कल रोई भी थी, अम्मा मुझे देखती रही फिर बोली कि तुमने जान बूझकर तो पाजेब गुम नही की थी और जब अब खो गई तो मेरे मारने डांटने से वो वापस थोड़ी मिल जाती और जिस चीज की वापसी नही हो सकती उसके लिए अफसोस क्यो मनाना। बस इस गलती से सबक लेना और आगे से ध्यान रखना लापरवाही मत करना वरना फिर कभी पाजेब नही दिलाऊगी।
मैं फिर से माँ की गोद मे छुप गयी। उनकी इतनी बड़ी बड़ी बात उस समय मेरी समझ में नही आई थी। इतनी बड़ी गलती करने बाद भी अम्मा से डाँट नही पड़ी मेरे लिए यही खुश होने और अम्मा पर ढेर सारा प्यार आने की वजह थी। लेकिन वो घटना जेहन में आज भी महफूज है और अम्मा की उस सीख का मतलब अब समझ में आया और हमने उस सीख को हमने न भूलने वाले सबक की तरह याद कर लिया।
लेखिका: अरुणिमा सिंह (उर्मिला)