माँ का प्यार : जिसके एक हाथ से थप्पड़ और दूसरे हाथ से रोटी खायी है
माँ एक ऐसा शब्द जिसको सुनते ही चेहरे पर अनायास मुस्कान आ जाती है, आज तक कोई भी माँ के प्यार को शब्दों में नहीं पिरो पाया है। माँ का प्यार जितना अनंत है उसको बया करना उतना ही आसान। ये इस धरा पर वो प्यार की मूर्ति है जो कभी भी अपने सन्तान से नाराज नहीं हो सकती, किसी ने सही कहा है ‘लब पे जिसके कभी श्राप नहीं होता, दुनिया में एक माँ ही है जिसके कर्मो में कभी पश्चाताप नहीं होता‘।
हर किसी का प्यार एक वजह से होता है लेकिन माँ का प्यार किसी वज़ह का मोहताज नहीं होता, हमारे भारत देश में अलग अलग भाषा है अलग अलग लोग है लेकिन सब अपनी जननी को माँ ही कहते है। अलग अलग भाषा होने के बाद भी माँ को माँ ही पुकारा जाता है, हमारी माँ ही हमारे अस्तित्व का निर्माण करती है हमारी माँ ही हमें एक आदर्श व्यक्ति बनाती है। वह हमारे आत्मविश्वास को कभी घटने नहीं देती और हमें हमेशा प्रेरित ही करती है ताकि हम आगे बढ़ते रहे कभी रुके नहीं। “यही है असली माँ का प्यार”
माँ हमारे जीवन की वो जड़ है जिसकी वजह से हम मजबूती के साथ खड़े रहते हैं। माँ हमें शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से मजबूत बनाती है। हमारी कई गलतयों के बावजूद, हम सभी के जीवन में ये सबसे ट्रांसपेरेंट और स्वार्थरहित रिश्ता है, जो हम हर चीज अपनी मां के साथ शेयर करते हैं। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की स्थिति कितनी गंभीर या सामान्य है, एक माँ हमेशा अपने बच्चों के लिए अपनी आखिरी सांस तक लड़ती रहती है। माँ ना होती तो हम ना होते, बिना माँ के कोई अपने जीवन की कल्पना भी कैसे कर सकता है। मैं कृतज्ञ हूँ अपनी उस माँ का जिसने मुझे इस संसार में लाने के लिए इतना कष्ट उठाया।
और अंत में दो शब्द माँ के लिए:
भला कोई क्या सिखाएगा मुझे तरीका प्यार करने का !
मैने अपने माँ के एक हाथ से रोटी तो दूसरे हाथ से चाटा खाया है !!
लेखिका – बीना जायसवाल, छावनी, बस्ती
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