Lockdown Effect: कमजोर होती अर्थव्यवस्था और मजबूत होती गृहणी
22 मार्च 2020, हम सभी अपने जीवन काल में पहली बार जनता कर्फ्यू के लिए उत्साहित थे, हम घर में बंद हो गए और इनडोर गेम खेला, स्वादिष्ट भोजन पकाया और इतने लंबे समय के बाद गुणवत्तापूर्ण समय बिताया। यह एक सामान्य रविवार की तरह नहीं था, हमने इसे तनावपूर्ण स्थिति के मुकाबले बहुत उत्साहित पाया। शाम 5 बजे हमने अपने डॉक्टरों, पुलिसकर्मियों, सफाई कर्मचारियों, नर्सों की सराहना की, जो कोरोना के साथ दिन-रात लड़ रहे थे। दिन इतना अच्छा गया। “Lockdown Effect”
23 तारीख को हम भूल जाते हैं कि जनता कर्फ्यू क्यों हुआ था और भीड़ में कदम रख दिया, जिसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में विवादित मामले हुए।
24 मार्च को, हमें आदरणीय प्रधानमंत्री जी से पूर्ण तालाबंदी के आदेश मिले। फिर से, हम सभी लंबे समय के लिए बंद हो गए। लेकिन वह (गृहिणी) जल्दी जाग गई, रसोई में गई और नाश्ता तैयार किया, अभी बर्तनो को साफ भी नहीं किया, तब तक दोपहर का भोजन तैयार करने का समय आ गया, इस बीच उसे सफाई का ध्यान रखना पड़ा, कपड़े धोना, बच्चों को लाड़-प्यार करना वगैरह वगैरह। जब वह बिस्तर पर जाती, तो जैसे- तैसे कर के बड़ी मुश्किल से सो पाती।
बार-बार समाचार, तरह तरह की घटनाओं के बारे में सूचनाएं, मृत्यु, धमकी, घर, इन सब की अब तो आदत हो चुकी थी, वह गुजरते समय के साथ अपनी सहनशक्ति विकसित कर रही थी। घरवाले अधिक स्नैक्स, अधिक व्यंजन की मांग करने लगे, वह यूट्यूब स्क्रॉल कर के, खाना पकाने वाले चैनल्स को सर्च करती और मुंह में पानी लाने वाले व्यंजन तैयार करके परोसती। सभी लॉकडाउन से खुश थे। कोई आधिकारिक काम नहीं था, कोई ऑफिस का तनाव नहीं था, कोई स्कूल नहीं था, कोई भी कॉलेज नहीं था, बाकी लोग इन सभी का आनंद ले रहे थे, लेकिन उसके पास कोई छुट्टियां नहीं हैं, रविवार नहीं हैं लेकिन एक स्थायी चीज है जो उसके पास है – लॉकडाउन, सीमाओं में बंद।
दिन बीतते गए, वे सभी अब ऊब गए थे, वे बाहर जाना चाहते थे, घूमना चाहते थे, कारें छूट गई थीं, समय बिताना मुश्किल हो गया था, वे सभी अब भावनात्मक रूप से कमजोर थे, लेकिन वह दिन-ब-दिन मजबूत होती गई अर्थव्यवस्था में गिरावट आई, उन लोगों में से कुछ को वेतन नहीं मिला, लेकिन वह एक उम्र से वेतन के बिना ही काम कर रही थी।
किचन में अब सीमित चीज़े ही बची रह गयी थी, खाना बनाने के लिए कोई फैंसी आइटम (जंक फ़ूड) नहीं था, अचानक किसी के दिमाग में आया, उसकी नौकरानी! उसके बारे में क्या? कैसे मैनेज कर रही है? अपने बच्चों को क्या खिला रही होगी? उसने कविता (नौकरानी) को फोन किया। उधर से कविता ने फ़ोन उठाया और अपने मालकिन की आवाज सुनते ही वो बिफ़र कर रोने लगी!!!, लॉकडाउन हर किसी के लिए खुशहाल नहीं था, उसने उसे घर पर बुलाया, उसे वेतन और वे सभी चीजें जो वह दे सकती थी दिया, लंबे समय के बाद वह मुस्कुराई, एक आत्म संतुष्टि की मुस्कान! किसी के बुरे वक़्त में काम आने वाली संतुष्टि!
लॉकडाउन के इस दौर में कोरोना ने हमें कई सबक सिखाए- कैसे निवेश किया जाए, कैसे बचाया जाए चाहे वो पैसा हो या सम्बन्ध। कैसे बचत करें और सुरक्षित रहें? और सीमाओं में रहकर कैसा महसूस करें। इस समय जब अर्थव्यवस्था डूब रही है, तो वह खुद कुछ ढूंढ रही है, किसी के बच्चों के बारे में सोच रही है, किसी की जान बचा रही है, खुद को ऊपर उठा रही है, और अपनी जिंदगी जिए जा रही है एक आदर्श गृहणी बनकर। Lockdown Effect
लेखिका: हीना खान
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