कोरोना और लॉकडाउन का आर्थिक पक्ष: भाग- 2

कोरोना और लॉकडाउन का आर्थिक पक्ष

दुनियाँ की प्रायः सभी उन्नत देशो की सरकारे अपने बजट में आपदा कोष का प्रोविजन रखती है, जिसका इस्तेमाल युद्ध या आकस्मिक प्राकृतिक आपदा के लिये किया जाता है. भारत में भी रिजर्व बैंक के पास तिल-तिल कर जोडा गया आपदा कोष था. लेकिन दुर्भाग्य से अभी पिछले साल ही वह आपदा कोष को सरकार ने रिजर्व बैंक से जबरदस्ती झटक लिया और सरकार के चहेते कोर्पोरेट्स को बांट दिया गया, उनकी ऋण माफी कर दी गई. यही धन आज के दिन काम आना था. दुर्भाग्य…..यदि आप अन्य विकसित देशो का आंकलन करे, तो पायेंगे कि वे सभी देश इस समय युद्ध स्तर पर अपने देश की इकोनोमी बचाने के लिये सार्थक कदम उठा रहे हैं, अपने तमाम खर्चो पर लगाम कस रहे हैं. वे अपने आर्थिक बजट को रिवाइज कर रहे हैं और जिन में से खर्चो को आगे के लिये टाला जा सकता है, उन पर रोक लगा दी है.

भारत के परिपेक्ष्य में आर्थिक अवधारणा:

वे देश अपने समस्त ऋण चुकाने में लगे हुए हैं, साथ ही शुरू से ही अपने नागरिको को त्वरित सहायता भी दे रहे हैं. इसके अलावा वे अपने अधिकांश कैपिटल खर्चे भी रोक चुके हैं. एक बार इस दौर से गुजर जायेँ, उसके बाद उन्हे फिर से शुरु किया जायेगा.
लेकिन हमारे देश की सरकार में दूरदृष्टि का नितांत अभाव परिलक्षित है. उसने अभी तक एक भी कैपिटल प्रोजेक्ट पर लगाम नही लगाई है, कुछ समय के लिये टाला भी नही है.

अभी हाल ही में सरकार ने 20 लाख करोड का पैकेज घोषित किया है, लेकिन क्या आपको रत्ती भर भी अंदाज है कि ये 20 लाख करोड आखिर आयेंगे कहाँ से? दुर्भाग्य से पहले से ही ऋणो के बोझ तले डूबी हुई अर्थव्यवस्था पर एक बहुत बडी राशि का अतिरिक्त ऋण लेकर देश की फिस्कल डेफिसिट को खतरनाक स्तर पर ला पटका है. इसके अतिरिक्त बडी संख्या में नये नोट छापे जायेंगे, जो बहुत बडी मुद्रा स्फीति का कारण बनने जा रही है.
साथ ही दूसरी बात ये भी है कि 20 लाख करोड के पैकेज में अधिकांश ऋण के रूप में दिया जायेगा.और तो और, जो पैकेज इस साल के वार्षिक बजट में दिये गये थे, वे भी इसमे जोड दिये गये हैं. ये सिर्फ मूर्ख बनाने का धंधा मात्र है, और अब यदि आगे जाकर डिमांड ही आधी हो जायेगी, तो ये ऋण अधिकांश NPA बन जायेंगे.

इस तरह पहले से ही डूबे बैंक इस NPA को किसी भी तरह झेल नही पायेंगे और दीवालिया हो जायेंगे. सरकार तो पहले से ही दिवालिया है, उसके पास तो पहले से ही डेफिसिट का बजट है. ये पैसे आगे की कमाई से भी चुका सकने की पोजिसन में नहीं रहेगी, क्योंकि अगले कई सालो तक जनता की परचेजिंग पावर आधी रह जायेगी. जनता सिर्फ अतिआवश्यक खरीदारी ही कर पायेगी. तो फिर इस तरह सरकार की टैक्स वसूली भी आधी रह जानी है.

अब जब टैक्स की आमदनी आधी रह जानी है, तो उतनी राशि तो वर्तमान के ऋण और उसपर पडने वाले ब्याज पर ही खर्च हो जायेगी. तो फिर ऐसे में सरकार अपने कर्मचारियोँ को सेलरी तक देने में ही असमर्थ हो जायेगी. दूसरी बात ये कि जब हर देश अपने इम्पोर्ट पर कंट्रोल करेंगे, तो हमारे देश का एक्स्पोर्ट भी प्रभावित होगा. इस तरह ट्रेड डेफिसिट और ज्यादा बढ जायेगी. रही सही कसर पूरी तब होगी, जब विदेशोँ में बसे करोडो लोगो की नौकरी छूट जायेगी और वे लोग जो अपने देश में एक बडी रकम विदेशी मुद्रा में भेजते आये हैं, वे खुद बेकार बनकर देश में आने को मजबूर होंगे.
और कोढ में खाज ये कि जिस तरह से अरब देशो को मुसलिम प्रताडना के चलते रुष्ट किया गया है, वे अब भारतीयोँ को निकाल कर पाकिस्तान-बांगला देश से कारीगर बुलायेंगे.

कुल मिलाकर देश बेहद… बेहद ही नाजुक दौर से गुजरने वाला है. अब इसका एकमात्र उपाय यही है कि सरकार अपने देश की वेस्ट पूंजी और फालतू जमीन का उपयोग करे, जिनका देश की इकोनोमी में कोई भी योगदान नहीं है. और ये वेस्ट पूंजी है मंदिर-मस्जिद के पास अकूत धन. साथ ही वक्फ बोर्ड के पास अनाप-सनाप फालतू जमीन पडी है. सरकार को चाहिये कि कानून लाकर उन जमीन का अधिकरण करे. इसी तरह सारे मंदिरो का अधिग्रहण करके उनकी अकूत धनराशि को अपने ऋण चुकाने के काम में लाये. एक बार सारा ऋण चूक जायेगा, तब हम वास्तविक प्रोग्रेस कर पायेंगे.

पाकिस्तान से दो-दो युद्ध के समय कांग्रेस ने भी ऐसा कुछ ही किया था. यहाँ तक कि उस समय हैदराबाद के निजाम ने भी अपना अकूत खजाना सरकार के लिये खोल दिया था और ढेर सोना दे दिया था. यही नहीं, हमारे देश में समाज के पास बेतहाशा सोना पडा है, जिसका देश की इकोनोमी में कोई भी योगदान नहीं है. इसके लिये गोल्ड बोंड लाकर सोना डिस्क्लोजर स्कीम लाये. तथा साथ ही सोने की खरीद-बिक्री पर 5% टैक्स भी लगाये. एक बात और, बरसो से हमारे देश में दुनियाँ का सबसे ज्यादा सोना खरीदा जाता रहा है. यह सोना देश की इकोनोमी में कोई काम नहीं आता. इसलिये सोने के आयात पर भारी टैक्स लगाया जाना चाहिये.

आर्थिक बचत के लाभ:

अंग्रेजी में एक कहावत है…….”A penny saved is a penny earned” अर्थात एक पैसा बचा पाना एक पैसे की कमाई बराबर है. वर्तमान समय में जब सरकार बिलकुल खाली हाथ खडी है और सिर्फ बडी-बडी बातो से ही जनता को बहला रही है. लेकिन ये ज्यादा समय नहीं चलने वाला. अंत में कुछ तो ठोस कदम उठाने ही होंगे, वरना पूरा देश डूब जायेगा और सदियो के लिये पिछड जायेगा. तो फिर जब अगले कई सालो तक जनता की परचेजिंग पावर आधी रह जायेगी. जनता सिर्फ अतिआवश्यक खरीदारी ही कर पायेगी. तो फिर इस तरह सरकार की टैक्स वसूली भी आधी रह जानी है. तो एकमात्र उपाय रह जाता है… खर्चो पर पूर्ण किफायत.

वैसे तो हमारे देश में इतने ज्यादा प्राकृतिक संसाधन हैं, कि देश को किसी भी तरह का कर लगाने की ही आवश्यकता नहीं. लेकिन दुर्भाग्य से इन संसाधनो का 90% लूट लिया जाता है, मिसमैनेज कर दिया जाता है. आज हम दुनिया के सबसे ज्यादा संसाधनो वाला देश हैं, तभी तो सदियो से पूरी दुनिया की आंखे हमारे संसाधनो पर रही है. मुगल और अंग्रेज हमपर शासन करने नहीं, बल्कि हमारे अकूत संसाधनो का दोहन करने आये थे. शायद आपको पता ही नहीं, कि किस बूरी कदर इन संसाधनो पर, जिनपर आपका-हमारा हक होना चाहिये था, वो तो 90% ऊपर ही ऊपर लूट लिया जाता है.

भ्रष्टाचार से मुक्ति के साथ बेहतर प्रबंधन आवश्यक:

अतः यही समय है कि सरकार को मजबूर करे कि वह अपने समस्त फालतू खर्च पर गहराई से नजर डाले और उनपर लगाम कसे, असलियत तो ये है कि समस्त सरकारी व्यय का आधे से ज्यादा भाग बचाया जा सकता है. स्वयम राजीव गांधी ने स्वीकारा था कि लचर सरकारी तंत्र के चलते देश का 85% संसाधन बेकार चला जाता है, असल काम में नही लग पाता. लेकिन इसके लिये अति लचर ब्युरोक्रेटिक तंत्र में आमूलचूल परिवर्तन करना पडेगा.
तो इस महा-आपदा की घडी में सबसे पहले इन लीकेज को बंद करना पडेगा. ये लीकेज कौन-कौन सी है, मैं बताता हूँ.

1. सबसे बडी लीकेज है भ्रष्टाचार. आज हमारा तंत्र इस बूरी तरह से भ्रष्ट हो चुका है, जिसका आपको अंदाज ही नहीं. ऊपर से नीचे पूरा सिस्टम ही जंग खा चुका है. सरकार स्वयम ही भ्रष्टाचार में पूरी तरह से सनी पडी है. और भ्रष्टाचार सदा ही ऊपर से नीचे की तरफ बहता है.
हमारे देश की अधिकांश जनता ईमानदार है. लेकिन सिस्टम ही उसे भ्रष्ट बनने को मजबूर कर डालता है. आज हम विश्व के भ्रस्टतम देशो में से एक हैं.
2. लीकेज सिर्फ भ्रष्टाचार की ही नहीं, भ्रष्टाचार तो कमोबेश अन्य देशो में भी है, लेकिन उनका एडमिनिस्ट्रेशन इतना बेहतर होता है कि भ्रष्टाचार का कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं पडता. लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश में तो एडमिनिस्ट्रेशन नाम की कोई चीज ही नहीं है. आज बडे बडे बिजनेस स्कूल्स के एमबीए कोर्स में बेहतरीन एडमिनिस्ट्रेशन करना ही तो सिखाया जाता है. लेकिन हमारा दुर्भाग्य ये है कि हमारे राजनेता अधिकांश जाहिल-अशिक्षित रहे हैं, उन्हे मैनेजमेंट की abc का भी ज्ञान नहीं. तो फिर वे आखिर क्या खाक एडमिनिस्ट्रेशन करेंगे?
3. तीसरी लीकेज है अकर्मण्यता की. हम भारतीय दुनिया की सबसे कामचोर, अकर्मण्य कौम हैं, ईमानदारी से मेहनत करना ही नहीं जानते, काम से हमारा 36 का आंकडा रहता है. और सरकारी तंत्र की अकर्मण्यता तो कोई भुक्तभोगी ही जानता है. इसी अकर्मण्यता के कारण हमारा खर्च कई गुना बढ जाता है. जिस काम को 1 आदमी आराम से कर सकता है, उसी काम को ब्युरोक्रेटिक तंत्र में 4 आदमी भी नहीं कर पाते, उलटे ज्यादा आदमी काम को उलझाने का काम ही करते हैं.
4. एक बहुत बडी लीकेज है…… बाबा आदम के जमाने से चले आ रहे सिस्टम. जबकि आज सबकुछ कम्प्युटराइज्ड हो चुका है, इंटर्नेट से जुड चुका है, हम अभी भी पुराने ढर्रे पर ही चले आ रहे हैं. जाहिल-अशिक्षित राजनेताओ और ब्युरोक्रेटिक तंत्र को तो नोट छापने से ही फुरसत नहीं रहती, तो फिर सिस्टम में सुधार कौन करे?
5. सबसे बडा दोष हमारी न्याय व्यवस्था में है, जिसमे अमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है. लेकिन हमारा राजनेताओ और ब्युरोक्रेटिक तंत्र जानबूझ कर अपने बचाव न्यायिक सिस्टम में सुधार नहीं करना चाहते और उसे उलटे जनता के उत्पीडन में मिस्यूज करते हैं. और बिल्ली के गले में घंटी आखिर बांधे कौन?

तो बंधुओ, यदि हमे अपने देश को दिवालिया होने से बचाना है, तो हमें सरकार को मजबूर कर देना पडेगा कि वह बेहतर एडमिनिस्ट्रेशन
द्वारा इस देश को बचाये. केजरीवाल इसका बेस्ट एक्जाम्पल है.
आगे अगले अंक में.

लेखक: कमल झँवर, सोशल एक्टिविस्ट, नेचुरोपैथ व लाइफस्टाइल कंसल्टेंट

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