प्रकृति का चमत्कार, गंगा का जल फिर हुआ अमृत जैसा शुद्ध !
कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी के कारण हुए Lockdown से देश में सभी तरह कि मानवीय गतिविधियां लम्बे समय तक बंद हैं, जिसने प्रकृति को पुनर्जीवन दिया है और उन्हें अपने फलने-फूलने का सुअवसर मिला है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने बहुत ही सकारात्मक और उत्साहवर्धक जानकारी साझा की है। उन्होंने बताया कि Lockdown कि वजह से गंगा नदी (Ganga River) पहले से अधिक साफ़ हो गयी है और नदी के पानी में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि हुई है।
श्री मिश्रा ने बताया कि लॉकडाउन के कुछ ही दिन बाद हमने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और संबंधित राज्यों के साथ बैठक करके उनसे नदियों के जल की गुणवत्ता पर नज़र रखते हुए उस पर अध्ययन करने का विचार प्रस्तुत किया। इसके आधार पर जल गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों द्वारा अप्रैल में गंगा नदी के जल के अलग-अलग स्थानों से सैंपल एकत्र किए और इन्हें रिसर्च व अध्ययन के लिए भेज दिया। एनएमसीजी के महानिदेशक ने कहा कि इसकी जो प्रारंभिक रिपोर्ट हमें प्राप्त हुई है उससे स्पष्ट होता है कि गंगा नदी पहले की तुलना में अधिक साफ हुई है। रिसर्च में पाया गया कि गंगा नदी (Ganga River) के जल में अनेक स्थानों पर घुलनशील ऑक्सीजन का स्तर काफी बढ़ा हुआ है जिससे ये स्पष्ट होता है कि जल पहले से अधिक स्वच्छ हुआ है।
श्री मिश्रा ने आगे कहा कि कई स्थानों पर नदी जल में जैविक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) का स्तर पहले की तुलना में कम हुआ है। पानी में ऑक्सीजन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने पर ही बीओडी का स्तर कम होता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी ) के आंकड़े कहते हैं, साथ ही आश्चर्य जनक बात ही है कि ज्यादातर निगरानी केद्रों में गंगा नदी के पानी को नहाने लायक पाया गया है। सीपीसीबी के वास्तविक समय के निगरानी द्वारा जो आंकड़े एकत्रित हुए हैं उनके अनुसार, गंगा नदी के विभिन्न स्थानों पर स्थित 36 निगरानी केन्द्रों में लगभग 27 केन्द्रों पर जल की गुणवत्ता नहाने लायक है। इसमें वन्यजीव तथा मछली पालन जैसे काम निःसंकोच किये जा सकते हैं।
जल की शुद्धता का पैमाना ये है कि जल में घुलनशील ऑक्सीजन का स्तर 5 मिलीग्राम/लीटर से अधिक होना चाहिए और बीओडी का स्तर 3 मिलीग्राम/लीटर से कम होना चाहिए। गंगा नदी के जल में इन दोनों ही मानकों के अनुसार काफी सुधार देखने को मिला है। एनएमसीजी के महानिदेशक ने बताया कि लॉकडाउन लागू होने के दौरान जल-मल शोधन संयंत्र (एसटीपी) का परिचालन सुचारू रूप से चलते रहने के कारण गंगा नदी (Ganga River) में जल मल नहीं जा सका। एक महत्वपूर्ण कारण ये भी है नदी जल के साफ होने के कारणों में। 20 अप्रैल से जल मल शोधन संयंत्र (एसटीपी) एवं इससे जुड़ी परियोजनाओं पर 7-8 स्थानों पर काम भी शुरू हो गया है।
इनमें खास तौर पर कानपुर और प्रयागराज शामिल हैं। इन दोनों ही स्थानों में गंगा के सर्वाधिक प्रदूषित होने का खतरा रहता है ऐसे में यहाँ पर जल मल शोधन संयंत्रों का चालू होना एक अच्छी खबर है। लॉकडाउन के द्वितीय चरण में नमामि गंगे के कार्यों को सशर्त अनुमति मिलने पर राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने मजदूरों और इंजीनियरों के साथ मिलकर काम करना प्रारम्भ कर दिया है, साथ ही एनएमसीजी ने राज्यों और IIT के सहयोग से परियोजना का डिजाइन भी पूरा कर लिया है। आम तौर पे इसमें काफी समय लगता लेकिन Lockdown कि वजह से ये जल्दी ही पूरा हो गया।
कितना सुखद आश्चर्य होता है ये जानकार जिस गंगा को साफ़ करने के लिए सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च करके परियोजना चलते हुए लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करते हुए भी कोई खास सफलता प्राप्त नहीं की उस गंगा ने लॉकडाउन में स्वयं ही स्वच्छ और निर्मल होकर मानव को ये सन्देश दे दिया कि प्रकृति के साथ सहयोग करके ही मानव का कल्याण हो सकता है। अगर मनुष्य केवल अँधाधुंध औद्योगिक विकास करने के लिए प्रकृति से खिलवाड़ करेगा तो निश्चित ही जल और वायु प्रदूषित होता रहेगा, और इससे उसका भला नहीं हो सकता।
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