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समय की जरूरत – बचे हुए खाने को पार्सल करा कर जरुरतमंदों को दें

Robin Hood Army is a great NGO

Robin Hood Army NGO


जब कभी मैं रेस्टोरेंट में जाता हूँ तब मैं जो भी खाने के लिए आर्डर करता हूँ तो उसमे कुछ बच जाता है और वो बचा हुआ खाना मैं पार्सल करा लेता हूँ और किसी जरूरत मंद को दे देता हूँ. एक दिन मेरे दिमाग में आया की हम सब लोग जब भी रेस्टोरेंट में जाते हैं तब कुछ ना कुछ खाना अपनी प्लेट्स में छोड़ देते हैं , तब मैंने सोचा की अगर हम सब बचे हुए खाने को पार्सल करा कर जरुरतमंदों को दे सकते हैं तो हम ऐसे करके बहुत से लोंगो की मदद कर सकते हैं.

मैं काफी दिनों से सोच रहा था की यह मैसेज लोंगो तक कैसे पहुँचाय जाये तभी मुझे एक टीवी शो के माध्यम से पता चला की हमारे देश में बहुत सी ऐसी संस्थाएँ हैं जो रेस्टोरेंट, मैरिज फंक्शन, बर्थडे पार्टी आदि में जो खाना लोंगो को परोसने के बाद उनके किचन में बच जाता है उस खाने को इन संस्थाओं के लोग जरूरत मंद लोंगो तक पहुँचा देते हैं उनमे से एक संस्था है रोबिन हुड आर्मी (RHA) तभी मैंने अपना मन पक्का किया की में इस संस्था के माध्यम से जरूरत मंद लोंगो की मदद कर सकता हूँ और थोड़ी समाज सेवा भी करने का सौ भाग्य प्राप्त होगा.

आरएचऐ की शुरुआत 2014 में दिल्ली के निवासी नील घोष जी ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर की. उन्होंने इसकी शुरुआत दिल्ली में एक फ्लाईओवर के नीचे सो रहे कुछ बलून सेलर, गरीब व भूँके पेट सो रहे लोंगो को रात का खाना खिलाकर की. उन्होंने यह खाना दिल्ली के होटल्स और रेस्टोरेंट से संपर्क करके बचे हुए खाने को लेकर जरूरत मंद लोंगो को बांटकर की जो उस रात भूखे पेट सोने वाले थे. यह एक छोटी से पहल आज एक मुहीम का रूप ले चुकी है जिसमें 12 देशों के, 80 शहरों से 16000 से ज्यादा स्वयंसेवी अपना महतबपूर्ण योगदान दे रहें हैं.

रोबिन हुड आर्मी कोई गैर सरकारी संगठन नहीं है, यह एक वालंटियर आधारित संगठन है, इस संस्था का कोई ऑफिस नहीं है, यह संस्था किसी से डोनेशन नहीं लेती है, इस संस्था के अदिकतर सदस्य नौकरीपेशा हैं या स्टूडेंट्स हैं, जो अपने व्यस्त समय में से कुछ घंटे निकाल कर इस संस्था के काम को करते हैं. इन लोंगो का काम है – होटल्स, रेस्टोरेंट और शादी जैसे समारोह में अधिक मात्रा में बने हुए भोजन को एकत्रित कर जरूरत मंद झुग्गियों और पुनर्वास कॉलोनियों के निवासियों तक यह भोजन पहुँचना और उनको भूखे पेट ना सोने देना है.

मेरा अनुभव और लर्निंगस:

मुझे केबीसी के कर्मवीर एपिसोड के माध्यम से पता चला की इस आर्मी से कैसे जुड़ सकते हैं. इस आर्मी की वेबसाइट पर रजिस्टर करने के बाद उस एरिया के रोबिन आप से कांटेक्ट करते हैं जिस एरिया में आप रहते हैं, और वो लोग आपको सबसे पास वाली जगह पर बुलाते हैं जहाँ पर रॉबिन्स की आर्मी एकत्रित होकर उस एरिया के आस पास की झुग्गियों और पुनर्वास कॉलोनियों में जाकर खाना वितरित करते हैं. मैं भी इसी तरह से इस आर्मी से जुड़ा और ऑफिस के बाद समय निकाल कर इस मुहीम से जुड़कर थोड़ी समाज सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ.

हर साल दिवाली के अवसर पर एक मुहीम चलायी जाती है जिसमे झुग्गियों और पुनर्वास कॉलोनियों के निवासियों को कपडे दिए जाते हैं और यह कपडे हम जैसे लोंगों के छोटे और पुराने लेकिन साफ़ व सुथरे कपड़े एकत्रित करके किये जाते हैं यह करने क बाद मुझे मालूम हुआ की आज भी अपने देश में न जाने कितने लोग हर रात को भूंका सोते हैं और उनकी देखवाल करने वाला कोई नहीं है. इतना सब कुछ करने के बाबजूद रोबिनहुड आर्मी का मानना है कि उन्होंने समस्या को सिर्फ सतही तौर पर बस छुआ है और इस समस्या का सिर्फ 1% ही समाधान निकला है. अभी इस दिशा में उन्हें लगातार प्रयास और लम्बा संघर्ष करना बाकि है.

इस समय देश में चल रही है घातक महामारी कोरोना के चलते देश में लॉक डाउन की स्थिति बनी हुई है और जिसकी वजह से देश के मजदूरों को दो वक़्त का खाना जूठा पाने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, इसको मद्दे नजर रखते हुए हर शहर की रोहिनहुड आर्मी की टीम ने एक मुहीम चलायी है जिसके तहत अनाज की किट मुहइया कराई जा रही है जिससे की मजदूर लोग दो वक़्त का भोजन प्राप्त कर सकें. इस अनाज की किट में 5 किलो आटा, 5 किलो चावल, तेल, नमक, मसाले इत्यादि सामान बांटा जाता है.

रॉबिनहुड आर्मी ने ऐसे समय में लोंगो की मदद करके एक बार फिर से अपना उद्देस्य साबित किया है.

लेखक: अरुण गर्ग, लीड कंसल्टेंट (आईटी), पुणे

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