राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर जितनी एकरसता Lockdown के 20 दिनों में थी, उतनी मुझे पिछले 10-12 दिनों में नही दिखी। खासकर कुछ अच्छे अंग्रेजी अखबारों में। कुछ घटनाये जो इन दिनों घटी उन पर मैं लंबे लंबे आर्टिकल लिखना चाहता था लेकिन काम की अधिकता ने अनुमति नही दी। आज समय निकाल कर जो घटनाये या लेख मुझे याद है उनको सारबद्ध कर देना चाह रहा हूँ।
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अम्बेडकर जयंती:
जिस दिन Lockdown Part-2 की घोषणा माननीय प्रधानमंत्री ने की थी उस दिन बाबा साहेब का जन्म दिन था, मोदी जी ने उनको श्रद्धांजलि देने के बाद अपने भाषण की शुरुआत की। अखबारों के एडिटोरियल में अम्बेडकर कही कही नजर आये और TV पर बिल्कुल नही। कुछ व्यक्तिगत व्हाट्सएप्प ग्रुप पर मैंने अम्बेडकर पर सार्थक चर्चा के प्रसंग छेड़े, पर निरर्थक रहे। जब कोई नेता राष्ट्रीय प्रकृति का हो जाता है तो वो सबका हो जाता है, जाति, धर्म और आस्था से परे। अम्बेडकर भी उसी प्रकृति के है इसमें किसी को संदेह नही होना चाहिए। आज देश की अर्थव्यवस्था गर्त में है ,1928 में भी थी। देश की अर्थव्यवस्था को रास्ता दिखाने के लिए एक केंद्रीय बैंक की जरूरत थी। हिल्टन यंग कमीशन बैठा जिस पर अम्बेडकर के कैम्ब्रिज में दिए एक लेख का प्रभाव साफ दिखता है। इस कमीशन के बाद देश को RBI मिला। अच्छा होता कि ऐसी खबरें उस दिन के अखबारों और TV चैनल पर होती लेकिन देश का दुर्भाग्य है।
महाराष्ट्र विधानसभा गठन के छः महीने (उद्धव ठाकरे):
अम्बेडकर की बात हो संविधान की न हो ये हो ही नही सकता था तो संविधान के ऐसे ही एक पेंच मे उद्धव जी फंसते नज़र आ रहे है। महाराष्ट्र विधानसभा गठन के छः महीने होने को है और ठाकरे जी अभी तक किसी सदन के सदस्य नही बने है तो विधि के अनुसार उनका मुख्यमंत्री पद खतरे में है। देश की हालत देखते हुए बाई इलेक्शन तो हो नही सकता तो ठाकरे जी को विधान परिषद का मुंह देखना होगा उसमे गवर्नर सदस्य संख्या के 1/12 लोगो को मनोनीत कर सकता है जिसमे से दो सीट 6 जून को खाली होंगी। ठाकरे जी को सदस्यता 27 मई तक चाहिए होगी। RPA रूल के हिसाब से अगर कोई मनोनीत सदस्य की सीट खाली होने और अगले चयन में एक साल से कम का फर्क हो तो उसे खाली रहने देना होता है इसलिए गवर्नर इस पशोपेश में भी होंगे कि इन दो लोगो को 5 दिन पहले सीट खाली करने को कैसे बोला जाए। बहरहाल इस मामले में गवर्नर की शक्ति राष्ट्रपति से भी ज्यादा है लेकिन ऐसे मौके कम ही आते है। पता नही क्यो इतना रोचक मामला TV और अखबार की पहुँच से बाहर है। Lockdown !
केरल मॉडल एवं प्रभाव:
कोरोना के मामले सबसे पहले केरल में नोट किये गए, कुछ सोशल मीडिया पोस्ट बेहद भड़काऊ लगी क्योकि वहां देशमत की सरकार नही है, शायद। केरल में जितनी तेजी से कोरोना के मामले आये ,इस राज्य ने उतनी ही तेजी से इस पर नियंत्रण पा लिया और स्थिति ये है कि अन्य राज्यो को केरल मॉडल फॉलो करने की हिदायत दी जा रही है।
अर्मेनियाई नरसंहार (1914-19) और किस्सा ख्वानी बाजार घटना(1930):
दो दिन पहले दो घटनाओ के शताब्दी वर्ष और 90 साल होने का संस्मरण किया गया। पहली घटना पहले विश्व युद्ध के समय की है जब ओटोमन साम्राज्य के खलीफा वंश का अंत हो रहा था और तुर्की जनतंत्र जिसे यंग तुर्क आंदोलन द्वारा पाया गया था, जैसी घटना हो रही थी। तुर्की में रहने वाले आर्मेनियन ईसाई समुदाय को मुस्लिम ओटोमन साम्राज्य द्वारा हमेशा से संदेह की नज़र से देखा गया और उन पर सामाजिक और आर्थिक प्रतिबंध लगाये गए। जनतंत्र की स्थापना के बाद इन्हें राहत की उम्मीद थी लेकिन ऐसा हुआ नही। जहाँ तुर्क जर्मन ग्रुप का साथ दे रहे थे तो आर्मेनियन पर रूस के सहयोग का संदेह किया गया। घटनाओ की कड़ी में 15 लाख आर्मेनियन को मौत के घाट उतार दिया गया। महिलाओं और बच्चों पर गैर मानवीय यातनाये की गई।
दूसरी घटना उस समय की है जब गांधी का सविनय अवज्ञा प्रारम्भ हो रहा था। सिंध के क्षेत्र में खान अब्दुल गफ्फार खान ,खुदाई खिदमतगार (लाल कुर्ती) आंदोलन पहले से ही चला रहे थे। उन्हें मुस्लिम लीग से सहयोग की उम्मीद थी जो उन्हें नही मिली, अंग्रेज इस बात से काफी उत्साहित थे कि वो एक ही धर्म के आंदोलनों के बीच दूरियां बनाने में सफल रहे और उन्होंने इस आंदोलन के सभी बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया।इसको लेकर किस्सा ख्वानी बाजार में बहुत बड़ी भीड़ उमड़ पड़ी और अंग्रेजो ने उन निहत्थे लोगो पर गोलियां चला दी जिसमे हजारों लोग मारे गए। इस घटना का महत्व इसलिए है कि ये हमे बताती है कि राष्ट्रीय महत्व के आगे धर्म और जाति मायने नही रखती क्योकि घटनाक्रम में गोरखा रेजीमेंट ने निहत्थे लोगो पर गोली चलाने से मना कर दिया और खुदाई खिदमतगार को कांग्रेस का सहयोग मिला।
पंचायती राज दिवस:
25-30 साल के नए चेहरे और उनमें भी ज्यादातर महिलाएं आपकी नेता हों, कैसा लगेगा। असंभव !
नही ऐसा ही दिखा जब 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस पर मोदी जी कुछ ग्राम प्रधानों के साथ कोरोना को लेकर VC ले रहे थे।
केंद्रीय और विधानसभा की राजनीति जहां धन, बल और अनुभव से चलती है तो वह स्थानीय स्वशासन के चुनाव कुछ उम्मीद जगाते है। बहुत समय तक हाशिये पर रहा स्थानीय स्वशासन भारत को गाँधीजी की देन है जिन्होंने इसकी पुरजोर सिफारिश की। कोरोना जैसी महामारी में केरल ने पंचायतों को DM जैसी शक्तियां दे दी और उसके सकारात्मक परिणाम आज देश के सामने रोल मॉडल है।
ग्रीन जोन:
सरकार ने देश को तीन जोन में बांट दिया है जो ये बताता है कि 3 तारिख़ क़े बाद क्या। ग्रीन जोन वो है जिसमे पिछले 28 दिनों से कोई नया मामला न आया हो। संभव है कि ऐसे जोन को छूट मिलेगी। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ये तरीका खतरनाक है क्योंकि अधिकांश राज्यो में जितने केस है उनका 25%-30% Asymphotetic है मतलब बीमारी का कोई Symptom न होने के बावजूद कोरोना पॉजिटिव। ग्रीन ज़ोन की अपेक्षा ग्रीन वर्क एनवायरनमेंट जरूरी है जहाँ PCR टेस्ट, थर्मल स्क्रीनिंग और अन्य सुविधाएं हो।
DA को फ्रीज करना:
सरकार ने CDA को सवा साल के लिए फ्रीज कर दिया और इसको लेकर कर्मचारी संगठन विरोध करने लगे और ऐसे बताने लगे मानो DA को शून्य कर दिया हो। फ्रीज का मतलब एक DA न बढेगा और न कम होगा। मेरी सरकार को एक सलाह है कि जैसे सरकारी कंपनियों में IDA रेट होता है जो अर्थव्यवस्था के ऊपर निर्भर है और इंडस्ट्रियल आउटपुट के हिसाब से कम और ज्यादा होता है,अन्य सरकारी संस्थाओं में भी लागू कर देना चाहिए और CDA को विनियमित करने की जिम्मेदारी को छोड़ देना चाहिए।फिर देखा जाता कि यही कर्मचारी संगठन DA फ्रीज होने की खुशी मना रहे होते। ऐसी अप्रतिम स्थिति में DA को लेकर छाती पीटना बचकानी हरकत है जबकि संसद , सांसदों की सैलरी 30% काट कर और MPLAD को दो साल तक Cease करके कुछ ऐसे संदेश दे चुकी है जो अनुच्छेद 360 की ओर इशारा करते है।
कुछ और भी बाते थी लेकिन अब टाइप करने की शक्ति नही रही और लोगो के पढ़ने की इच्छा भी नही रहेगी, अगर कुछ और ज्यादा लिखा तो। (Lockdown Effect)
लेखक: मयंक मिश्रा (कानपुर)