हाल ही में बालाघाट के पास एक प्रवासी मजदूर की दिल को छू लेने वाली तस्वीर सामने आयी। हैदराबाद में नौकरी करने वाला बालाघाट का एक मजदूर लकड़ी से बनी एक गाड़ी पर अपनी पत्नी और बच्ची को बैठाकर गाड़ी खींचता हुआ बालाघाट पहुंच गया। उसकी पत्नी ८ माह की गर्भवती है और बेटी 2 साल की है। दोनों ही एक तरह से पैदल लम्बी दूरी की यात्रा करने में असमर्थ थीं, लेकिन मजदूर के हौसले ने उन्हें हिम्मत दी और निकल पड़े घर के लिए जो की हैदराबाद से 800 किलोमीटर दूर था। कुछ दूर तो मजदूर के साथ वो पैदल चली, बाद में बेटी को पापा ने गोद में लिया लेकिन ८ माह की गर्भवती पत्नी की हिम्मत जवाब देने लगी।
लांजी के एसडीओपी नितेश भार्गव के अनुसार, ”हमने बालाघाट की सीमा पर एक मजदूर को अपनी पत्नी धनवंती के साथ हैदराबाद से पैदल आते देखा। साथ में 2 साल की मासूम बेटी भी थी जिसे वह हाथ की बनी गाड़ी में खींचते हुए यहां तक ले आया। हमने उसकी बेटी को चप्पल दी खाने की बिस्किट भी दिए और सीमा से लगे उसके गांव तक एक निजी गाड़ी से भेज दिया है।”
फिर रास्ते में ही लकड़ी और बांस के टुकड़े एकत्र कर उनसे एक गाड़ी बनाई और उसे खींचता हुआ अपनी 2 साल की बेटी और पत्नी को लिए वह 800 किलोमीटर दूर पैदल चला आया। रोड पर 2 साल की मासूम बच्ची अनुरागिनी को छोटी-सी गाड़ी में बैठाकर खींचता हुआ चला आ रहा रामू नाम का यह मजदूर हैदराबाद से मई माह की तपती दोपहरी में 17 दिन पैदल चल कर बालाघाट पहुंचा है। साथ में गर्भवती पत्नी को लिए आते हुए इस शख्स को जब जिले की रजेगांव सीमा पर ड्यूटी पर तैनात जवानों ने इसको देखा तो । मासूम बिटिया को पुलिस ने खाने को बिस्किट और चप्पल दी, बेटी के पास चप्पल भी नहीं थी, और फिर यहां से उसके घर तक एक पहुचहने के लिए गाड़ी का बंदोबस्त भी किया। मजदूर ने बताया कि वह घर वापसी के लिए तमाम कोशिशें कर के जब थक गया तो वह पैदल ही निकलने का निर्णय लिया।
प्रवासी मजदूरों की ऐसी हालत और दुर्दशा की कई कहानियां इस लॉक डाउन में देखने को मिल रही हैं। शहरों से रोजगार छिन जाने के बाद खाने और जीने की तकलीफ के चलते पलायन करते ये मजदूर जैसे तैसे बस अपने घर पहुंचना चाह रहे हैं, इसके लिए वे रास्ते में आने वाली मुश्किलों का सामना भी बड़ी हिम्मत से कर रहे हैं।