कोरोना और लॉकडाउन का उजला पक्ष

कोरोना और लॉकडाउन का आर्थिक पक्ष

बंधुओ, एक तरफ जहाँ पूरी दुनिया कोरोना के कहर से त्रस्त है, लेकिन मैं उसका उजला पक्ष भी देख-समझ पा रहा हूँ. और भविष्य के लिये आशांवित भी हूँ. हो सकता है कि किसी दिन मैं भी इसकी चपेट में आ जाऊँ, लेकिन शायद मेरे बाद भी यह धरती सबक ले ले, तो कोई गम नहीं रहेगा. मैं खुद भी सादा जीवन-उच्च विचार का पोषक रहा हूँ, और यथासम्भव इसे अपने जीवन में उतारा भी है. लेकिन फिर भी परिवार-समाज में रहते हुए अक्सर मुखौटा ओढना पड ही जाता है, बचे रहना सम्भव नहीं. लेकिन शायद अब पूरे समाज को, भले ही मजबूरन, सादा जीवन अपनाना ही पडेगा.

जीवन के सफर का उतार चढ़ाव एवं समाज का ताना-बाना:

एक समय था, जब मैं दिवालिया होने के कगार पर था, आगे भी जिंदगी में एक से एक त्रासदी झेली, फिर भी कभी भी ईमानदारी का साथ नहीं छोडा, पुरुषार्थ नहीं छोडा, बल्कि चौगुने जोश से परिस्थिति को बदलने में लग गया. मैं ने अर्श से फर्श का सफर देखा है. लेकिन असली बाजी तब पलटी, जब अपना पुरुषार्थ जारी रखते हुए ईश्वर को समर्पित हुआ. और तब से आज तक ईश्वर ने मेरे परिवार को गोद में उठा रखा है. आज भी मैं अपने अलग-अलग जगहो पर रहे रहे पूरे परिवार सहित इकट्ठा होकर शहरोँ से दूर प्रकृति की गोद में आराम फरमा रहा हूँ, कोरोना के कहर से बचा हुआ भी हूँ. मेरे लिये तो ये एक ओपर्च्युनिटी बन गई.

एक मारवाडी बनिया होने के नाते मोटा खाना-मोटा पहनना और पैसा पचा पाना मेरे खून में रहा है. साथ ही गांधी जी की इस बात का हिमायती रहा हूँ कि भारत की आत्मा गांव में बसती है. लेकिन ये जो बाते मैंने अपने जीवन में उतारी हुई है, समाज-दुनिया नहीं समझ पाया, उलटे पूरे विश्व में प्रकृति का अंधाधुंध दोहन जारी रहा……तो फिर अंत में, जिस तरह एक बाप अपनी बिगडी संतान को सुधारने के लिये तमाचा मार कर दंड देता है, आज प्रकृति ने भी मजबूरन हमें तमाचा जडा है.

समाज एवं प्रकृति पर कोरोना का प्रभाव:

लेकिन जिस तरह बाप के तमाचे में भी प्यार छिपा होता है, प्रकृति भी हमें एक मौका अवश्य ही देगी सुधरने का… ये मेरा विस्वास है…..भले ही वो समय देखने के लिये मैँ रहूँ या ना रहूँ. एक बात आप अच्छी तरह से समझ लीजिये कि कोरोना लम्बे समय तक खत्म ना होने वाला वायरस है, और ये भी अच्छी तरह से समझ लीजिये कि आज नहीं तो कल, हम सभी को इसकी चपेट में आना ही पडेगा. लेकिन जो लोग आज भी संतुलित जीवन जी पा रहे हैं,जिनका रेजिंटेंस पावर स्ट्रोंग है, उनपर इसका असर बेहद कम होगा.

बंधुओ, एक तरफ जहाँ पूरी दुनिया कोरोना के कहर से त्रस्त है, लेकिन मैं उसका उजला पक्ष भी देख-समझ पा रहा हूँ. और आशांवित भी हूँ.
मेरी पोस्ट विभिन्न बिंदुओ पर आधारित होगी, जैसे कि:
1. पर्यावरण
2. आर्थिक और
3. सामाजिक
आर्थिक परिदृष्य भी अलग अलग हिस्सोँ में बांटा गया है
अ. वैश्विक
आ. आर्थिक- सरकार
इ. सामाजिक और
ई. व्यक्तिगत-पारिवारिक

तो चलिये, सबसे पहले पर्यावरण पर चर्चा करते हैं:

जैसा कि मैनेँ पहले भी पोस्ट लिखी थी, कि आने वाले समय में किसी भी देश की उन्नति का पैमाना भौतिक नहीँ, आर्थिक नहीं, बल्कि पर्यावरण आधारित होगा और भुटान-डेन्मार्क जैसे देश सबसे ज्यादा अमीर माने जायेंगे. वैसे भी ये देश सबसे खुशहाल देश माने जाते हैं.
लेकिन ये सिर्फ किताबी बात ही रही है. लेकिन अब आगे पूरी दुनियाँ इस पर बहुत सीरियस हो जायेगी, और जो भी देश पर्यावरण के नुकसान के लिये जिम्मेदार होगा, उसपर वैश्विक समाज हेवी पेनल्टी लगायेगा और वो पैनेल्टी उन देशोँ को दी जायेगी, जो देश पर्यावरण के रक्षक होंगे. अभी भी छोटे रूप में ये नियम लागू है, अब और सख्त होंगे. जो इंडस्ट्री पर्यावरण के लिये नुकसान देह है, उन पर भी बहुत ज्यादा सख्ती लगाई जायेगी.

वैसे भी, जब उपभोग घटेगा तो माल भी कम बनाया जायेगा और इस तरह पर्यावरण अपने आप सुधरेगा.
जिस तरह से इन सालो में ओजोन की लेयर कमजोर पडी है, ग्लोबल वार्मिग बेतहासा बढी है, ग्लेशियर गलते जा रहे हैं, दुनियाँ को वैसे भी कुछेक सालोँ में खत्म हो जाना था. इसलिये अब पर्यावरण पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया जायेगा. ये कोरोना के चलते ही सम्भव हो पायेगा.
इसके लिये सभी देश नये सिरे से नियम-कानून बनाये जायेंगे.
आगे भी लिखना जारी रहेगा पढते रहियेगा.

लेखक: कमल झँवर, सोशल एक्टिविस्ट, नेचुरोपैथ व लाइफस्टाइल कंसल्टेंट

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