प्रकृति ने एक झन्नाटेदार तमाचा जड़ा और सारी हेंकड़ी निकल गई

LOCKDOWN IMPACT - lockdown ki maar

प्रकृति ने एक झन्नाटेदार तमाचा जड़ा और आप सीधे धरती पर आ पड़े, सारी हेंकड़ी निकल गई, लोकडाउन की शुरुवात में तो सबको बडा ही मजा आया था, खासकर जो लोग लम्बी छुट्टी को तरसते रहते थे, लेकिन कुछ दिन बाद ही बोरियत शुरू हो गई. फिर आगे चलकर दूसरे महीने में तो ऐसा लगने लगा कि पागल जो जायेंगे, समय काटे नही कटे, सोये तो आखिर कितना सोये, दिन भर बैठे-बैठे रहने से थकावट ही नहीं होती तो रात को जल्दी ही नींद पूरी हो गई. अब फोन पर गप्पे मारे भी तो आखिर कितनी? वैसे भी अगले कुछेक महीनो में मानसिक रोगियो की बाढ सी आने वाली है. दूसरी तरफ लोकडाउन खुलने के बाद एबोर्शन कराने और अगले जनवरी महीने में बच्चो की लाइन लग जाने वाली है.

बहरहाल जो भी हो, इस लोकडाउन के चलते बहुत सारे मिथक टूटे. कुछेक उदाहरण सामने हैं.

1. पति-पत्नी का साथ क्या होता है, पहली बार समझ में आया. पहली बार एक-दूसरे की परत दर परत खुली, एक-दूसरे को बेहतर समझ पाये. बच्चो पर भी ध्यान पहली बार गया है, उनकी समस्त एक्टिविटी को ध्यान से देखने-समझने-परखने का मौका मिला

2. रईस क्या, मिडिल क्लास क्या, सभी को अपनी औकात समझ में आ गई, खासकर वे, जो ये समझते रहे कि पैसे से सबकुछ हासिल किया जा सकते है, सबकुछ खरीदा जा सकता है.

3. काम वाली बाई के बिना एक दिन भी भारी पडने वालो की शुरू में तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई, लेकिन बाद में ये भी समझ में आ गया कि सब मिलजुल कर काम करे, तो घर चलाना इतना मुश्किल भी नहीं. कम से कम उनके नखरे तो नहीं उठाने पडते. पैसे बचे, सो अलग.

4. तुम दिन भर घर में पडी पडी आखिर करती क्या हो? एक बच्चे तक को ढंग से नहीं सम्भाल सकती, उसे सही से खिला-पढा नही सकती, कुछ दिनो में ही समझ में आ गया, जब खुद पर पडी, समझ में आ गया कि बेचारी पूरे दिन किस कदर गृहस्थी में, सबके आगे नाचते फिरती रहती है. एक काम खत्म नही हुआ और तुरंत दूसरा, दिन भर लगी पडी रहती है.

5. पत्नी को समझ में आ गया कि ओफिस में काम से फुरसत नहीं मिलने का रोना रोने वाला पति आखिर पूरे दिन भर कितना काम करता है, जैसे ही पत्नी सामने आती है, मोबाइल या लैपटोप का पेज झट से बदलना, फिर भी कई बार पीछे खडी पत्नी को सबकुछ दिखाई दे ही गया.

6. अच्छा खाना बनाने में आखिर क्या पडा है, बर्तन-झाडू-साफी में वक्त ही कितना लगता है, ये डायलोग तो अब बोलना ही भूल गये, जब ये सारे काम खुद पर पड गये.

7. मैं ना रहूँ तो सबको पता चल जायेगा, जैसे कि घर-ओफिस-सारी दुनियाँ मेरे भरोसे ही चल रही है, ये भ्र्म तो बहुत जल्दी टूट गया.

8. रिश्तो की अहमियत तब समझ में आई, जब अपनी बोरियत मिटाने के लिये शाम कोडिनर के बाद सारे रिश्तेदार-मित्र ओनलाइन गेम्स-अंताक्षरी आदि आदि की विभिन्न वैरायटी द्वारा आनंद उठाये, मजे की बात ये कि ये पता चला कि मौजमस्ती के लिये पैसे की कोई आवश्यकता नहीं. ईनाम के पैसे घूमफिर कर बराबर ही रहे.

9. खोज-खोज कर पुराने दोस्तो को याद किया और फोन पर खूब गप्पे मारी, नई-पुरानी यादे ताजा हो गई.

10. कहाँ तो देश भर में अस्पताल भरे पडे रहते थे, और कहाँ लोकडाउन में अधिकांस अस्पताल में सीरियस मरीजोँ के सिवाय संख्या नगण्य रही. फिर भी कोई बहुत सारे लोग बीमारी से नहीं मरे. इसका मतलब ये हुआ कि अस्पतालो में भरे रहने वाले अधिकांस मरीज स्वतः ही ठीक हो जाते है, क्योंकि हमारा शरीर ही हमारा सबसे बडा डाक्टर है और वह स्वयम ही अपने को हील कर लेता है. अधिकांस दवा सपोर्टर का काम भर करती है. अधिकतर दवाई पेन किलर टाइप और एंटी-बायोटिक टाइप की होती है. लोकडाउन में सीरियस मरीज के अलावा अन्य किसी को घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं मिली, फिर भी अधिकतर मरीज की तबियत कुछेक दिनो में अपने आप ही सुधर गई. इसलिये, अब ये बात समाज को समझ लेनी चाहिये कि नेचरोपैथी का पालन करके, प्रकृति से सहयोगिता द्वारा बडे आराम से स्वयँ को स्वस्थ रखा जा सकता है, छोटी-मोटी बीमारी के लिये दवा का सेवन करने की अवश्यकता ही ना पडे, बीमारी के बढने पर ही दवा/डाक्टर की शरण में जाना चाहिये. साथ ही अपनी इम्म्युनिटी को सुधारना चाहिये. इससे स्वास्ठ पर सकारात्मक असर पडेगा और साथ ही बहुत बडे खर्चे से भी बचा जा सकेगा.

11. समस्त प्रतिष्ठानो को भी पता चला कि अधिकांस काम बिना ओफिस के भी, वर्क फ्रोम होम द्वारा किया जा सकता है….. ये प्रक्रिया आगे भी लागू रहेगी,, सारी मीटिंग्स वीडियो चैटिंग द्वारा भी आसानी से हो सकती है. यहाँ तक कि संसद भी ओनलाइन चल सकती है. हाँ, दुकान आदि तो पहले की तरह ही चलेंगी, लेकिन उनमे भी यथासम्भव होम डिलिवरी की सुविधा देंगे.

12. जब महानगरो में ओफिसो की उतनी ज्यादा आवश्यकता ही नहीं रह जायेगी, तो कई सारे लोग गांव की तरफ रुख कर लेंगे और नगरो की भीड्भाड भी कम हो जायेगी, प्रोपर्टी के दाम भी खूब गिरेंगे. वैसे भी ईएमआई ना भर पाने के चलते सेकंड हैंड फ्लैट्स बेचने की बाढ सी आ जायेगी. खास्कर जि लोगो ने इंवेस्ट्मेंट के हिसाब से फ्लैट्स खरीद रखे थे, अधिकांस बिकवाली पर आ जायेंगे, लेकिन खरीदार नहीं मिलेंगे.

13 .ये भी समझ में आ गया कि एक घंटे की ओनलाइन क्लासेज करवाने वाले स्कूल वाले आखिर 6-8 घंटे तक करते क्या है? और उसके लिये लम्बी-चौडी फीस चार्ज करते हैं.

14. पहले कितनी ही कोशिस कर ली, पान-गुटका-दारू-सिगरेट छूटती ही नही, अब? लोकडाउन ने ऐसी चपत लगाई, सारी खुमारी इन दिनो में उतर गई. अब यह आपपर डिपेंड करता है कि उनसे पूरी तारह से तौबा कर ले.

15. होटल-रेस्तराँ-डिस्को-पार्टी, मौज-मस्ती के शौकीन उच्च वर्ग के युवा को भी सादा जीवन जीने को मजबूर होना पडेगा.

16. नाई से रोजाना शेविंग-हजामत करवाने वाले कहाँ गये?

17. लोकडाउन के बाद जब पैंट पहनने के लिये टांगे डालेंगे, तो पेट के नीचे ही अटक जायेगी, बेल्ट बांधने में नानी याद आ जायेगी.
अगले अंक में आपको लोकडाउन और उसके बाद के और भी कई सारे सामजिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक, मानसिक पहलू से रूबरू कराऊंगा. आप भी अपने-अपने अनुभव अवश्य सांझा करे.

लेखक: कमल झँवर, सोशल एक्टिविस्ट, नेचुरोपैथ व लाइफस्टाइल कंसल्टेंट

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