शहरों में जनसँख्या वृद्धि, कोरोना का प्रभाव और टेक्नोलोजी की उपयोगिता

कोरोना का प्रभाव सबसे ज्यादा शहरोँ में

कोरोना का प्रभाव सबसे ज्यादा शहरोँ में देखने को मिला. इसलिये इसकी सबसे बडी तोड है अति घने शहरीकरण का खात्मा, और ये आज की इंटरनेट-कम्प्युटर और मोबाइल युग में बहुत सम्भव भी है…. यही बात हमें कोरोना ने सिखाई है, और दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात ये सामने आ रही है कि गावों में कोरोना का प्रभाव बेहद कम है और यदि है भी, तो अधिकांस मरीज ठीक भी हो जा रहा है, क्योंकि गावों में बेहतर खानपान और हवापानी के चलते लोगो की इ्म्युनिटि शहरो से काफी बेहतर है. वैसे भी भारत सदा से गावों का देश ही रहा था, लेकिन मुगलो और खासकर अंग्रेजो ने यहाँ आकर शहरीकरण शुरु किया क्योंकि उन्हे सारी सुख-सुविधा एक ही स्थान पर चाहिये होती थी. शहरीकरण आधुनिक काल की देन है.
स्वयम गांधीजी ने कहा था कि भारत की आत्मा गावों में बसती है. लेकिन उस समय औद्योगिक डवलपमेन्ट के लिए शहरों का विकास कुछ हद तक जरूरी भी था. लेकिन गलती ये हुई कि शहरो के साथ साथ गावों का विकास भी समानांतर विकास करना चाहिये था. भारत को शहरीकरण से लाभ कम हुआ, नुकसान ज्यादा.

जनसंख्या की त्रासदी और शहरीकरण:

एक तो वैसे भी हमारी जनसंख्या आजादी से आज तक चार गुनी हो गई. ऊपर से शहरीकरण के चलते लोगो को छोटे छोटे घर में ठूंस-ठूंस कर रहना पडता है. आजादी के बाद गावों की भयंकर अनदेखी की गई और सारा विकास शहर तक ही सिमट कर रह गया, गावों में बेसिक फेसिलिटी और यातायात के साधन भी उपलब्ध नहीं कराये गये. सबसे बडी त्रासदी ये हुई कि लोगो को दो दो घर बसाने पड गये, एक गांव में और दूसरा शहर में. इससे जगह की कमी भी होने लगी और खर्च भी बेहद बढ गया. यही नहीं, बार बार आने-जाने से इसके चलते यातायात का खर्च भी बढता गया.

लेकिन चूंकि उस वक्त हर काम के लिये फिजिकल प्रेजेंस ही चाहिये होता था, साथ ही यातायात के साधन भी शहरो में ही डवलप हो पाये, इसलिये स्कूल-कोलेज-अस्पताल और समस्त सरकारी/ गैर सरकारी/ व्यापारिक कार्यालय आदि सब शहर में ही खुले, सारी अर्थव्यवस्था के केंद्र भी शहर ही बने और शहरो में नौकरी मिलनी भी आसान हो गई. इसीलिये बहुत बडी संख्या में एक बडी आबादी को अपना गांव छोड कर शहर को पलायन करना पडा.

दूसरा बडा कारण था………..जातिवाद. गावों में जातिवाद अभी भी बदस्तूर कायम है. ऊपर से न्याय व्यवस्था बेहद लचर. लेकिन शहर में बस काम की पूछ ही होती है, जाति कोई खास मायने नहीं रखती. वैसे भी शिक्षा के प्रसार से जातिभेद में कुछ कमी आई है.

तीसरा बडा कारण था गावों में न्याय व्यवस्था में कमी, जिसके चलते नारी की सुरक्षा सम्भव नहीं थी. साथ ही गावों के लोग अनपढ/अशिक्षित रहने के चलते शिक्षित वर्ग वहाँ रहना पसंद नहीं करता. इसी तरह के अन्य भी कई सारे कारण है, जिनके चलते लोग शहर में बसने को मजबूर हुए.

क्या कोरोना के कारण कम होगी शहरी जनसँख्या ?

21वी सदी में पूरी दुनियाँ ही जब एक गांव में परिवर्तित होती चली जा रही है और ये सम्भव हुआ है टेक्नोलोजी, इंटरनेट और यातायात की सुविधा के कारण. यही कारण है कि कोरोना लॉकडाउन ने हमें घर बैठे भी अपने अधिकांस काम निर्विघ्न, बल्कि बेहतर तरीके से करने को मजबूर कर दिया है. यहाँ तक कि अब ओफिस की आवश्यकता ही बेहद कम हो गई है. मीटिंग्स तक ओनलाइन वीडियो द्वारा हो रही है. विदेशो में तो अब ये आम बात हो चुकी है. सिर्फ जहाँ शारिरिक उपस्थिति आवश्यक नहीं है. आज बहुत कुछ ऐसा है, जो आप गांव तो क्या, जंगल में रहकर भी कर सकते हैं….. बस इंटरनेट और मोबाइल की कनेक्टिविटी होनी चाहिये. यहाँ तक की स्कूली शिक्षा भी अब डिस्टेंस लर्निंग द्वारा सम्भव हो पायेगी. सब्जेक्ट बहुत इम्पोर्टेंट है, इसलिये विस्तार में आगे, अगली पोस्ट में, पढते रहिये.

लेखक: कमल झँवर, सोशल एक्टिविस्ट, नेचुरोपैथ व लाइफस्टाइल कंसल्टेंट

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