पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले की वो प्रमुख Detention Camp जहाँ देश के क्रांतिकारियों को रखा जाता था

Detention Camp - Hijli-Jail

आईये हम आपको बताते हैं एक ऐसी बिल्डिंग के बारे जो कभी कारागार हुआ करती थी. दरअसल ये एक तरह का  डिटेंशन कैंप (Detention Camp) है जो अंग्रेजों के ज़माने में बनायीं गयी थी, जो देखने में आज भी पुरानी नहीं लगती और न ही जेल लगती है, ये भारतीय क्रांतिकारी कैदियों के लिए बनाया गया था !

विदेशी वस्तुओं का बहिस्कार करने वाले क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके इन Detention Camp में रखा जाने लगा. इस तरह के तीन Detention Camp बनाये गए जिसमें हिजली के अलावा बक्सादुअर और बहरामपुर डिटेंशन कैंप बनाया गया, दरअसल विदेशी वस्तुओं का बहिस्कार करने वाले क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके इन डिटेंशन कैंप में रखने के लिए अंग्रेजो को एक कानून बनाना पड़ा था.

हिजली पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले की वो प्रमुख जेल (Detention Camp) थी जहाँ देश के बड़े और नामी क्रांतिकारियों को रखा गया था, इन क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके जेलों में रखना अंग्रेजी हुकूमत के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी.

हिजली की इस जेल को आज भी IIT Kharagpur के कैंपस में देखा जा सकता है और यहाँ की हर एक सेल में क्रांतिकारियों का शिलालेख है जो भारत सरकार ने उनकी याद में एक स्मारक के रूप में संजो के रखा है !

१. रानी शिरोमणि – देहाती वीरांगना
दरअसल दक्षिणी बंगाल में १८ वीं शताब्दी की किसान क्रांति का नेतृत्व रानी शिरोमणि व मिदनापुर के जमींदार राजा अजीत सिंह की पत्नी ने की थी.उन्होंने १७६० में अपने पति की मृत्यु के बाद राज्य की बाग़डोर कुशलता पूर्वक संभाली. उसी कालखंड में दिल्ली के मुग़ल राजाओं ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा की भूमि की दीवानी सौंप दी थी, जिससे अंग्रेजो के भूमि कर में कई गुना वृद्धि हो गयी.इस कुटिलता से अनेक छोटे किसानों की भूमि और संपत्ति अंग्रेजों ने जब्त कर ली. इस के विरोध में धीरे धीरे क्रांतिकारी गतिविधियों में तेजी आयी जिसका नेतृत्व रानी ने देहातियों को ब्रिटिश के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध के लिए संगठित किया. इसलिए रानी को गिरफ्तार करके १३ वर्षों तक जेल में कैद रखा गया जहाँ १८१२ में उनकी मृत्यु हो गयी.

२. अचल सिंह – नायक विद्रोह के सूरमा
मिदनापुर के आदिवासी कृषक १७९३ में चुयार विद्रोह एवं बागरी विद्रोह जैसे बगावत के लिए जाने जाने लगे.
नायक लोग आदिवासी (गंवई) थे जो स्थानीय जमींदारों व भूस्वामियों के यहाँ निजी सुरक्षा गॉर्डों के रूप में कार्यरत थे. ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए जमींदारों व नायकों को उपहार स्वरुप मिली भूमि को हड़पने का सुनियोजित कार्यक्रम प्रारम्भ किया. अचल सिंह ने व्यथित नायकों के लिये संघर्ष आरम्भ किया जिसे वे शिलावती नदी के किनारे स्थित गंगानी के जंगलों से चलाते थे. अचल व उनके लोगों को धोखा दिया गया जिससे कंपनी अधिकारियों द्वारा उन्हें गोली मार दिया गया तथा उनके २०० साथियों को पेड़ों पर फांसी दे दी गयी.

३. ईश्वरचंद विद्यासागर
जो कि किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. ये मिदनापुर के प्रख्यात महान विभूतियों में से एक हैं. इन्हें पुनर्जागरण काल में हमारे देशवासियों के भीतर राष्ट्रवाद की ज्योत प्रज्वलित करने वाले प्रेरक ज्योतिर्पुंज के रूप में याद किया जाता है.

४. बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय – साहित्य द्वारा आज़ादी की प्रेरणा
मिदनापुर के इस डिप्टी कलेक्टर के पुत्र ने अपनी युवावस्था का अधिकांश समय मिदनापुर में ही बिताया.
इनको बीए की परीक्षा में अव्वल आने पर इसी जिले का डिप्टी मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया. इन्होंने संस्कृत के प्रसिद्ध कविता वन्दे मातरम की रचना १९६० में की जोकि एक उपन्यास आनंद मठ का अंश है.
ऐसा कहा जाता है कि यह कविता मिदनापुर कि हरियाली व प्राकृतिक सौंदर्य से प्रेरित थी, जिसका अर्थ है मातृभूमि को नमन. यही आने वाले समय में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा बनी. वस्तुतः अपनी लोकप्रियता के कारन ही यह आज देश के राष्ट्रगीत के रूप में मान्य है.

५. हेमचन्द्र कानूनगो – प्रथम राष्ट्रीय ध्वज के प्रारूप के वास्तुकार
हेमचन्द्र कानूनगो एक उत्साही युवक और चौथी मिदनापुर के सदस्य थे जोकि अब कोलकाता में है. यह एक गुप्त समिति थी जोकि १९०५ में गठित की गयी थी. ये वही शख्स थे जो पेरिस में अध्ययन के दौरान बम बनाने कि तकनीक अपने साथ लाये थे, और इन्होंने ही भीकाजी कामा से प्रेरित होकर राष्ट्रीय ध्वज की कल्पना की थी, और उसी ध्वज को २२ अगस्त १९०७ के जर्मनी अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट सम्मलेन में फहराया गया था.

६. खुदीराम बोस एवं प्रफुल्ल चाकी – तरुण शहीद
इन्होंने एक निर्दोष बालक को बेंत से पीटकर बेहोश करने वाले मजिस्ट्रेट से प्रतिशोध लेने का प्रण किया था, जिसके चलते उस पर बम फेंकने के कारण खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर के फांसी दे दी गयी. उस समय उनकी उम्र १८ वर्ष थी. प्रफुल्ल चाकी ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अपनी इह लीला समाप्त कर ली.

७. बीरेन्द्र नाथ शास्मल – देश प्राण
बीरेन्द्र नाथ शास्मल प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने २० वर्ष की अल्पायु में ही राष्ट्र को हिला देने वाली राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लिया. जैसे कि- १९०५ का बंगाल विभाजन, १९११ का मिदनापुर विभाजन, ९२० का अवज्ञा आंदोलन, १९३० का नमक सत्याग्रह. इनको इनकी देशभक्ति के लिए देशप्राण या राष्ट्रप्रेमी की संज्ञा दी जाती है.

क्रांतिकारी घटनाओं का शिलालेख :

८. नारायणगढ़ में रेलवे पटरी विध्वंस:
क्रांतिकारी गतिविधियों में संभवतः सबसे पहली घटना थी जिसमें ६ दिसंबर १९०७ को नारायणगढ़ में रेलवे की पटरी को बम से उड़ा दिया गया था. जिससे यात्रियों को या रेलवे को कोई बहुत हानि तो नहीं हुई थी लेकिन क्रांतिकारियों में एक नए आत्मविश्वास का सूत्रपात हुआ. इस बम को बनाने में हेमचन्द्र कानूनगो और उनके साथी बैरिन्द्र नाथ घोष  एवं उल्लासकर दत्ता शामिल थे.

९. पिछाबोनी नमक सत्याग्रह
ब्रिटिश शासन में स्थानीय नमक विक्रेताओं की उपेक्षा करते हुए विदेश से नमक़ आयात किया जाता था. जिसके विरोध में गाँधी जी के नेतृत्व में नमक सत्याग्रह एवं दांडी मार्च से प्रेरित होकर यहाँ के स्थानीय निवासियों ने नमक कारखानों की शुरुवात की. इस घटना से चिढ़कर जिला मजिस्ट्रेट पेड्डी ने पिछाबोनी एवं नोरघाट में एकत्रित हुए २५०० लोगों की भीड़ पर लाठी चार्ज का आदेश दे दिया था.

१०. मजिस्ट्रेट पेड्डी की हत्या
मजिस्ट्रेट पेड्डी के व्यवहार से तंग आकर जिले के कुछ युवाओं ने बंगाल वॅलिंटियर नामक संगठन बनाया जिनके प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद एवं सुभाष चंद बोस के विचार थे. विमलदास गुप्ता एवं ज्योतिजीवन घोष ७ अप्रैल १९३० को मिदनापुर के एक प्रदर्शनी में आये मजिस्ट्रेट पेड्डी की गोली मारकर हत्या कर दी.

११. हिजली नज़रबंदी शिविर में गोलीबारी – हिजली नरसंहार
मिदनापुर में घटी राजनीतिक घटनाओं से जिले की जेलें राजनीतिक बंदियों से भरने लगीं.
इस कारण हिजली में बंदियों के लिए प्रशाशनिक भवन को नज़र बंद शिविर (Detention Camp) के रूप में तब्दील करना पड़ा, और उसी समय पेड्डी की हत्या हुई थी जिसके चलते शिविर के अधिकारियों का व्यवहार बहुत क्रूरतापूर्ण हो गया था.
बाद में इसी ने हिजली नरसंहार का रूप लिया. आज़ादी के बाद १९५१ में इसी स्थान पर देश के प्रथम भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT Kharagpur) का जन्म हुआ.

१२. मिदनापुर जिले के एक और मजिस्ट्रेट – रॉबर्ट डगलस एवं बर्ज की हत्या
हिजली नरसंहार से क्षुब्ध दो नवयुवकों प्रद्युत कुमार भट्टाचार्य एवं प्रभांशु शेखर पाल ने रहस्यमय तरीके से डगलस के कक्ष में घुसकर गोली मार दी.
पेड्डी एवं डगलस की हत्या के बाद पुलिस एवं सेना की मदद से क्रांतिकारी गतिविधियों को दबाने की कोशिश की गयी जिसके फलस्वरूप एक और मजिस्ट्रेट बर्ज की हत्या कर दी गयी, जिसमें १६ वर्षीय दो नवयुवक क्रांतिकारी अनाथबन्धु पांजा एवं मृगेंद्र दत्ता  शामिल थे. उसके बाद ब्रिटिश का कोई मजिस्ट्रेट यहाँ नियुक्त नहीं किया गया.

१३. मातंगी हाजरा – वयोवृद्धा महिला स्वतंत्रता सेनानी
ये सन् १८७० में मिदनापुर के गांव में सामान्य ग्रामीण परिवार में जन्मी थीं. जिले में ब्रितानी प्रशासन के अत्याचार ने उन्हें ६० साल की उम्र में सक्रिय राजनीति में शामिल होने को प्रेरित किया. उन्होंने १९३० में नमक सत्याग्रह तथा १९४२ में तमलूक शहर (ताम्रलिप्त) के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया. अन्य क्रांतिकारियों की भांति उन्होंने भी अपनी शहादत दी थी और दूसरे जेलों में स्थानांतरण के पहले एक दिन के उन्हें भी हिजली के महिला कारागार (Detention Camp) में रखा गया था.

१४. ताम्रलिप्त (तमलूक) राष्ट्रीय सरकार – ब्रिटिश राज को चुनौती
भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ की हुंकार और ७२ वर्षीय मातंगी हाजरा एवं अन्य की शहादत से प्रेरित होकर मिदनापुर जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए तमलूक राष्ट्रीय सरकार की स्थापना की और स्वराज्य की घोषणा कर दी. इस के गठन में विद्युत वाहिनी एवं भगिनी वाहिनी के असंख्य सेनानियों का बलिदान था.

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